anubhav
अब तो हवाएं भी कराहने लगी हैं समा भी खोमिशी की चादर ओढ़ बैठा है दिलों में तूफान है मानो हर सांस में एक शैतान है बस क्या कहूं विनती है तुझसे चल पड़ ओ थमे हुए वक़्त इतना ना भी ले इम्तेहान तू तो ऐसा नहीं था तू क्यों बनता जा रहा है इंसान पहले वक्त तुम्हारे हाथ में था पर तुम्हारे पास नहीं अब वक्त तुम्हारे पास है। पर तुम्हारे हाथ में नहीं कमाल देखो तब तुम भाग रहे थे वक्त नहीं अब वक्त भी बैठा और तुम भी पर कुछ कर सकते नहीं