mera anubhav
अजनबी नहीं है राहें मेरी
बस ज़रा खफा हैं
मैं सुनता नहीं हूं ना उनकी
क्योंकि वो कहते हैं
मैं जैसे चलाऊं तू वैसे चल
उसी में तेरी रजा है
और मैं हूं कि
विपरीत चलकर उनके
मुझे आता मज़ा है
तकलीफ बता ज़रूर दूंगी
पर दावा है
आप सुन भी लोगे तो क्या
जो जब तक लगा रहता है
सब सही
जिस दिन खुल जाता है
बिखरा मिलता है सब
हर कहीं
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