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Showing posts from November, 2016

उस वक़्त को करते सलाम

उस वक़्त को करते सलाम जिसकी नस नस में बसा था सम्मान , चाहे भिन थी जातियाँ पर सबका एक ही लक्श था दिलों में सुकून था हर कोई प्रेम का भक़्त था , चुलेह पर पकती थी रोटी अमन की जलती थी ज्योति , खुद को हम बुलाते थे असल मज़े ज़िंदगी के मिल बाँट उठाते थे , आज दो कदम भी एकेले हैं तन्हाईओं से भरे मेले हैं......

परख में फरक

परख में फरक कहीं एक चिराग से भी दिखता उजाला तो कहीं चिरागों का मेला.......... पर वहाँ इंसान है काला.......

जो अभी झुकी नही डाली

जो अभी झुकी नही डाली मैं उसका हूँ माली मैं और कोई नही वही हूँ जिसने तुम्हे भीड़ में चलना सिखाया ……… जिसको तुमने एकेलेपन से मिलवाया , पर मैं आज भी तुम्हारे लए कुछ भी कर सकता हूँ , बस आज़माना मत आज़मालो अगर ....तो बाद में पछताना मत तुम्हारा पिता

कुछ कहती हैं ये ओंस की बूँदें ओंस की बूँदें

कुछ  कहती हैं ये ओंस की बूँदें ओंस की बूँदें जब पत्तों को चूमें कुछ कहती है कुछ पल संग रहती है धीमी धीमी चाल से सब को निहलाती है दुन्ध्ला कर, सर्दी में सर्दी को बढ़ाती है पर हम क्या जाने इस तरह प्रेम दे वो प्रकृति को सैलाती है, निश्चित समय पर आती सर्दी के सँवेरे को सजाती, जो भी मिलता, सब को छू चलती क्योंकि मेहमान होती कुछ पल की, शीशे पर भी छोड़ती पैगाम बच्चे लिखते जिस पर अपना नाम, इस तरह जब ये बूँदें सुबह-सुबह हरियाली को चूमे, संग अपने ये सारी प्रकृति को ले घूमें, फिर उगता सूरज सुन कर सब की पुकार, सर्दी के मौसम की दवा बनकर अपरम्पार, तब ओंस से ढकी ये हरियाली चमकती, जैसे हो हीरे का बाज़ार, फिर ओंस की ये बूँदें लुप्त कहीं हो जाती और अगले वर्ष सर्दी में फिर से मिलने आती।

मेरी खामोशी

                             मेरी       खामोशी खामोश हूँ गुनेहगर नही मैं पियार कर सकता हूँ व्यापार नहीं , रिश्तों की एहमियाद समझता हूँ इसलिए उन्हें सिर - आँखों पर रखता हूँ , दुख ये है कि , कोई मेरी खामोशी को पढ़ नहीं सका और मुझे सिवा इन रिश्तों के कभी कोई नही दिखा....

पियासा सागर

                     पियासा सागर अब पियासा है सागर जाने कहाँ गया वो उजागर , जो मन को लुभाता था नीले आकाश को भी रंगो से सजाता था , हवाओं के रुख़ पत्तों से बात कर गुज़रते थे फूलों की खुशबू से पक्षी चहकते थे , हर ओर से हरियाली रंगारंग कार्यकर्म दिखाती थी सूरज की किरणें पृथ्वी को चमकाती थी , बदलते मौसम जीवन में बदलाव लाते थे समय के साथ बदलने का पाठ पढ़ाते थे , समुद्र की लहरें मन के मैल को धो जाती थी नई उमँगो के बीज बो जाती थी , आज केवल बनावटी दुनिया का खेल तमाशा है इसलिए सागर पियासा है....

एहसासों के मोतीओं को पिरों नही पाते

एहसासों के मोतीओं को पिरों नही पाते नज़रें मिला कर तुमसे बुझे बुझे हो जाते, इशारे करते जब तुम हम खुद को गुम सुम से पाते, अनकहे शब्दो के भंवर में खुद ब खुद फँस जाते, सपने देखते नही तुम्हारे जाने फिर क्यों गिनते हैं तारे, दूर दूर तक थमा सन्नाटा फिर क्यों लगता की कोई है जो हमको है पुकारे, और जब दिखाई भी नही देता कोई फिर किससे ये एहसास हैं तकरारे….

क्या खूब कहा था किसी ने

क्या खूब कहा था किसी ने हसरते पूरी करने की खुवाहिश में ना उतरना मेरे दोस्त ये ज़िंदगी का मेला हसीन ज़रूर दिखता है पर यहाँ खुवाहिशे पूरी करने के नाम पर सुकून बिकता है, तुम एक हसरत पूरी करोगे वो दूसरी का दरवाज़ा खोल जाएगा इस सफ़र में उलझ कर तू एक दिन जीना ही भूल जाएगा, दूर बैठे दरिया का पानी मीठा ही लगेगा पर आज जो 2 रोटी तू चैन से खा रहा है सुकून से जीना एक दिन तुझे उस ही में दिखेगा इसलिए इच्छा कर पर चैन मत गवा जो है उसका शुक्रिया अदा कर देख जीने में आएगा कितना मज़ा.......