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Showing posts from September, 2017

ज़िंदगी हमारी दिल से मुस्कुराइ होती ..........

काश हमने हर सुबह भीतर बैठे रावण को मार कर जगाई होती , किसी का दिल दुखाने  से पहले खुद की पलक भर आई होती किसी की इज़्ज़त बेआबरू करने से पहले खुद की बेटी रुलाई होती प्रकृति को नष्ट करने से पहले साँसे मिट्टी में दबाई होती , किसी की हसी उड़ाने से पहले खुद की हसीं उड़वाई होती अन का अनादर करने से पहले उससे की जुदाई होती , मंदिरों में धूध बहाने से पहले किसी पियासे की पियास भुज़ाई होती , तो आज  पल पल ना संस्कारों की जग हॅसायी होती बेटियाँ पराई नही, सिर्फ़ उनकी विदाई होती हृदय में सदभावना , लोगों के समाई होती जग कल्याण में संगत जुटाई होती संतुष्ता से ज़िंदगी बिताई होती ज़िंदगी हमारी दिल से मुस्कुराइ होती ..........

बादशाह कहते थे लोग हमें

बादशाह कहते थे लोग हमें जब तक हम ना समझ थे जब जब सीख कर आगे बढ़े वही लोग नसीहत देने को हर मोड़ पर मिले खड़े ..................

रिश्तों की मिठास हमारी ताक़त होती है

रिश्तों की मिठास  हमारी ताक़त होती है  जिसका हमें एहसास नही होता  पर जब जन्म लेती है ,  उन रिश्तों मे खटास , ताक़त दम तोड़ती है  और हमें एहसास होता है ...............  काश हमें सही वक़्त पर इन बातों  में विश्‍वास हो जाए, और हम कद्र कर सकें उन रिश्तों की  जो हम सोच बैठते हैं की बेवजह थे , पर बाद मे समझ आता है  नसीब वाले थे जो हमने ऐसे रिश्ते थे पाएँ  जो ग़लत फैमियों की बुनियाद पर रख कर हमने गावाएँ .........................

हे प्रभु मैं कहीं भी कैसी भी हूँ, खुश हूँ अगर बिटिया हूँ

हे प्रभु मैं कहीं भी कैसी भी हूँ, खुश हूँ अगर बिटिया हूँ डगर कहीं हो मुश्किलों में मंज़िल हो मगर में खुश हूँ अगर बिटिया हूँ पर्वतों से घबराती नही तूफ़ानो में रुकती नही , क्योंकि में खुश हूँ , अगर बिटिया हूँ बाबा की लड़ली माँ की दुलारी भाई की कलाई की खुसबु हूँ अगर में बिटिया हूँ हर जन्म मुझे बिटिया , का ही देना प्रभु तुझसे मेरी है यही आरज़ू ..............

बादलों की गड़गड़ाहट कह रही है अब वो सुकून नही

बादलों की गड़गड़ाहट कह रही है अब वो सुकून नही बरसा करते थे हम अपनी धुन में अब वो जुनून नही , क्योंकि हमारी बूँदों की टिप टिप अब धरती वासियों जागती नही पुकारा करती थी हमें जो आवाज़ वो अब हम तक आती नही , संसारिक सुख की चाह में मनुष्य हुमको भूल गया इसलिए सावन का झूला सूखा ही झूल गया

ज़िंदगी से शिकायते नही रखी हमने सोचा जो मिला वो भला ,

ज़िंदगी से शिकायते नही रखी हमने सोचा जो मिला वो भला   , पर इसका मतलब ये नही कि हमें गम ही ना मिला , हमें एहसास देर से हुआ की ज़माना हमसे जलता रहा ये सोच कर की ये क्या किस्मत लेकर पला, आज मन कहता है............... गम मे मुस्कुराना हमारे लिए मुश्किल था, गम दिखना आसान दुनिया कैसी है मैं समझ ना पाया नादान

सपने

सपने खुवाबों में तुम रखते हो हमसे वास्ता हर उम्मीद का गुज़रता है तुमसे रास्ता , खो जाते हो तुम , भोर होने पर ढूंढता रहता हूँ तुम्हे हर डगर , क्या वास्तविकता से तुम्हारा नाता नही या होश में बैठा मानव तुमको भाता नही .............

एक अजीब सा रिश्ता बनता जा रहा है

एक अजीब सा रिश्ता बनता जा रहा है उन चेहरों के साथ , जिनके पीछे छिपे होते हैं गहरे राज़ , या यूँ कह लो की ज़िंदगी की गहराई का अनुभव मिलता है , जो किताबों के ज़रिए मुझे  मिलता नही क्योंकि उनकी हसी के पीछे गम को जब भी पढ़ने की कोशिश करता हूँ , तूफ़ानो में नाव चलाने के हुन्नर में और भी गहरा उतरता हूँ 

गुज़रते वक़्त के साथ हम कितना भी दौड़ लें

गुज़रते वक़्त के साथ हम कितना भी दौड़ लें कुछ दिल से जुड़े लोगों की हसीन यादें हमारा साथ कभी नही छोड़ती , वक़्त के हारे हम भले ही उनसे दूर हो जाएँ पर यादें हमारे रास्तों को उनके पास ही मोड़ती.........

कम से कम उसको इंसाफ़ तो दिलवादो .....

हर आँख नाम नही शायद इसलिए सबको गम नही, उस घर के खिलोनो से आती है आवाज़ कब बँध होगा हैवानियत का ये गंदा नाच, गोद उजड़ गई जिसकी महसूस करे कोई हर साँस में रह गई सिसकी, लाल आँचल को छोड़ सो गया कफ्न ऑड, कोई उसकी रूह को तो सुलादो कम से कम उसको इंसाफ़ तो दिलवादो .....

मुद्दत हुई बात करे कुछ गुज़रे अफ़सानो की

मुद्दत हुई बात करे कुछ गुज़रे अफ़सानो की जी रहे हैं जाने किस धुन में ज़माने की, पियास है पानी भी है फिर रहते हैं पियासे, सियासत मिल गई ज्ञान भरा है, फिर भी रहते जिगयासे , समुंदर पसंद है उसके उफान नही, बस बाते बड़ी है काम नही , गीता - क़ुरान  सब पढ़ी पर मन में ना उतरी उसकी एक भी कड़ी , मुह पर दिखावटी मुस्कुराहट लिए बैठे है और मन में है नफ़रत भारी , दुनिया बेहद खूबसूरत है जानते हैं पर जीने के सच को नही मानते हैं
मुद्दत हुई बात करे कुछ गुज़रे अफ़सानो की जी रहे हैं जाने किस धुन में ज़माने की, पियास है पानी भी है फिर रहते हैं पियासे, सियासत मिल गई ज्ञान भरा है, फिर भी रहते जिगयासे , समुंदर पसंद है उसके उफान नही, बस बाते बड़ी है काम नही , गीता - क़ुरान  सब पढ़ी पर मन में ना उतरी उसकी एक भी कड़ी , मुह पर दिखावटी मुस्कुराहट लिए बैठे है और मन में है नफ़रत भारी , दुनिया बेहद खूबसूरत है जानते हैं पर जीने के सच को नही मानते हैं

गुरु एक सागर है

गुरु एक सागर है जिसमें डुबकी लगा व्यवहार जीवन अपना सीख लें, मन में बसा तो संसार के सभी सुख अपने संतुष्ट रहेंगें सपने, कदमों को मिलेगी कामयाबी गुरु की कृपा में छिपी है वो चाबी  मार्ग दर्शन कराया  जीवन हुआ सफल जबसे ली गुरु की छाया

मेरे प्रभु मुझे पर कृपा करो

मेरे प्रभु मुझे पर कृपा करो इस भक्त की ओर दया करो, तू मुझमें रहे में तुझमें रहूँ हर हाल में नाम तेरा जपता रहूँ, पूरब में हूँ चाहे पश्चिम में नज़रो में ध्यान बस तेरा ही हो मंज़िलों पर निडर चलता रहूँ जिस नगर में बसु वहाँ बसेरा तेरा ही हो, फूलों पर चलूं या काँटों पर कदम मेरे ये कभी ना हिले चाहे भीड़ में हूँ या एकांत में समक्ष मेरे सदा तू ही मिले........ जय श्री कृष्णा

रूह की उदासी मन की पीड़ा

रूह की उदासी मन की पीड़ा कह रही है हे जगत के स्वामी फिर अवतार लो और उठाओ समाज सुधार का बीड़ा, हाथों से कंगन छीने जा रहे हैं आँखों का काजल माथे पर घसीटा जा रहा है, औरत को सारे आम बेआबरू कर मन , तन , हर रूप में पीटा जा रहा है, जिस्म में आवाज़ नही रूह रही है चीख कोई सुनवाई नही औरत की हर पल मांगती है वो भीक उजाले में भरे हैं अंधेरे अंधेरोन में शैतानी रातों के घेरे हर करवट ज़्ख़मों को उभारे हे जगत के स्वामी कब आओगे तुम औरत की तड़पती की रूह तुम्हें पुकारे