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Showing posts from September, 2016

उलझनों में उलझी ज़िंदगी

उलझनों में उलझी ज़िंदगी किस तरह लगती है में ढूंडू उत्तर में वो पच्छिम में मिलती है आँख मिचोली खेलती है मेरे संग जाने केसी है ये जंग वो मुझसे है परेशन इस बात से मैं हूँ हैरान , खुद से ही खुद की लड़ाई ये कैसी दुविधा में मैं आई मन की सुनूँ या कदमों की इन चंद पैसों से.................... रोटी खरीदुं या मल्हम ज़ख़्मो की.........

ज़िंदगी के चौराहों पर

ज़िंदगी के चौराहों पर रोज़ देखती हूँ ….. कुछ रिश्तों को मोड़ बदलते हुए कुछ ऐसे भी जो अंजानों का भी हाथ थ i म लेते हैं साथ चलते हुए , क्यों वक़्त ये आईना दिखता है ? और... मंज़िल पर भी दोनो को पहुँचता है , सवाल ये है …….. की …… फिर ……. खुश कौन है मंज़िल या रिश्तें   ? मन कहता है सिर्फ़ वो जो किसी भी परिस्थिति में नही बिकते........

जन्‍म दिन की बहुत बहुत बधाई एक प्रधान मंत्री ऐसा भी नरेंद्र दामोदर दास मोदी

जन्‍म दिन की बहुत बहुत बधाई एक प्रधान मंत्री ऐसा भी नरेंद्र दामोदर दास मोदी एक महान शक्सियत जिसकी हूँ, मैं भक्त जिसने मिसाल करी कायम चाय बेचने से लेकर प्रधान मंत्री बनने का रखना दम, जिसे विवेकानंद जी की किताबों ने दी प्रेरणा , पिलू फूल जैसे नाटक की नहीं की जा सकती कल्पना पहुँच गए हिमालय करने अध्यात्मिक खोज साधू संतों की सेवा के आगे नहीं था कोई होश , वकील साहब के संग का उन पर चढ़ा था ऐसा रंग कि उंगली पकड़ उनकी एलान कर दी दुश्मनों के खिलाफ जंग , बारह साल की उम्र में ही पकड़ा मगरमच्छ क्योकि समय आ गया था बदलने का मंदिर का ध्वज , चलता छप्पन इंच सीना तान कर मानवता की वो पहचान है खोद कर बनाना जानते है जो रास्ते उन वीरो का प्रतिमान है, गुजरात को बनाकर मिट्टी से सोना दिया नारी को सम्मान है, कोने कोने तक पहुँचाई जान सुविधा, वहाँ कोई ना किसी का गुलाम है, स्वतन्त्राता दिवस के शुभ अवसर पर जब दहाड़ा ये शेर फूँक दिया दुश्मनो के इरादों, को कर दिया ढेर रम ढेर , चका चौंध रह गई आँखें देख कर ऐसा अनुभवी विद्वान , जिसके संघ

कुछ इस तरह मैं वक़्त से टकराया,,,,,

कुछ इस तरह मैं वक़्त से टकराया,,,,, कि जिस पर मैने सब कुछ लूटाया था आज उस ही ने मुझे सरे बाज़ार गिराया, मैं सोचता था की इम्तेहान मेरे ख़त्म हो गए पर अस्ल तज़ुर्बा मैने वक़्त से ही पाया.........

तुमने ये अचानक क्या कह दिया

तुमने ये अचानक क्या कह दिया सुन कर मैं चकित रह गया, कोई जवाब नही था मेरे पास जाने वो घड़ी मैं कैसे सेह गया, वो शब्द कि पियार नही करती मैं तुमसे मानो मेरा जनाज़ा ले गया, याद करोगे एक दिन .यकीनन याद करोगे एक दिन, एक तूफान आया था जो चुप चाप बह गया, फिर जब थम जाएगा ये समा ता उम्र याद करोगे की एक ऐसा आशिक था जो महोब्बत की उँचाई को छू कर खुशी खुशी मेरे लिए डेह गया.......

तुम्हारी खामोशी को नज़र अंदाज़ कर

तुम्हारी खामोशी को नज़र अंदाज़ कर सच हमसे गुनाह हो गया महोब्बत में एक आशिक हमसे फनाह हो गया, तुमने सोचा की हम क्यों इज़हार करें हमने सोचा की वो हमसे पहले पियार करें, शायद इस ही क्श्मकश में दिल की बात ज़ुँबा पर ना आई आज समझ पता हूँ जिसकी की गहराई, पर अब पछताने से इन बातों को बतलाने से, बदलाव नही ला सकते हम काश उस वक़्त ये हिम्मत जुटाई होती तुमसे ये बात ना छुपाई होती, तो आज जिस राह पर चल पड़े हैं वहाँ तुम्हारा एहसास नही तुम्हारा साथ होता, खुद से शिकायत नही खुद पर विश्वास होता..........

गुरु का गुनगान करे गुरु का गुन गान,

गुरु का गुनगान करे गुरु का गुन गान, जैसे इस धरती उपर आसमान, जो बताए आपको क्या है आपकी पहचान, और करे आपसे उसके महत्व का बखान, माँ-बाप की अँगुली पकड़ कर देखते है हम जो दुनिया, उसको समझने का देता है वो ज्ञान, आपके बचपन से ही जुट जाता है जो बनाने में आपको एक नेक इन्सान, ताकि सुख समय बीते आपका भविष्य और वर्तमान, गुरु वो होता है जो लुटा देता है हम पर अपने ज्ञान का सागर बिना किये एहसान, और गुरु द्वारा इसी तरह होता है दिव्य समाज का निर्माण, क्या कभी ये सोचते है, जिस पत्थर की मूर्ति को अपनी सारधा से बना देते है भगवान, आखिर उसी रूप ले कर आता है ये गुरु महान, हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है, जैसे क्षमा से बढ़कर नहीं है कोई दान, वैसे ही गुरु से बढ़कर आज भी नहीं है किसी का स्थान, तो आईए इन बातों की गहराईयों पर दे थोड़ा ध्यान, फिर मन से करे अपने गुरु का गुनगान।

खामोशी की लेकर आड़

खामोशी की लेकर आड़ क्यों कर रहे हो..........रिश्तों के साथ खिलवाड़, कह दो जो कहना है खामोशी अब तुम्हारी तीर से चुभाती है मन को मेरे बहुत दुखाती है, तुम्हें लगता है कि मन की बात यूँ इस तरह हमसे छुपा लोगे और हम इंतेज़ार में बैठे रहते हैं कि कब तुम संग अपने हमें समुंदर में बहा लोगे........