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Showing posts from February, 2018

ना देखा तुझे तो क्या फ़ायदा है जीने से......

ना देखा तुझे तो क्या फ़ायदा है जीने से...... मिलता नही तू मुझे मंदिर , मज़्ज़िद , गुरुद्वारे में जब ढूँढते- ढूँढते पहुँचता हूँ मैं तुझे तेरे दुवारे में , बस्ता है अगर तू दिल में तू क्यों बैठा चॉबारे में , ठोकर खिलवाकर ही पहुँचता तू किनारे में , इश्क़ की नुमाईश हुई मेरी तब तू कहाँ था ठुकराए जाने पर गिरा... तो क्यों उठा था , कैसे हैं ये तेरे जलवे मैं नही समझ पाता चाहे तू जलादे दीपक चाहे बुझाता , हालात के साथ अंधेरे में जब मैं चलता आँसुओं के साथ मैं जलता तेरे वजूद को मैं खोज नही पाता पर मिलजाता कोई अजनबी जो हाथ बढ़ाता, ये केसी अदा है मैं बेख़बर हूँ तू मुझमें है तो क्या? सच में मैं तेरे घर हूँ ? दिखा दे जलवा एक बार लगा कर सीने से ना देखा तुझे तो क्या फ़ायदा है जीने से.......

तुम्हारी खातिर

माना कि तुझे देख इस बाग के फूल खिल जाते हैं पर हमने भी दोस्ती तुम्हारी खातिर काँटों से की है जो तुम्हारे फूल को छूने से पहले पिघल जाते हैं ................

हम तो खुद को जीतने चले हैं................ यूँ ही नही घर से निकले हैं ..............

हार ही माननी होती तो आपसे यहाँ मिलने नही आते हम तो खुद को जीतने चले हैं................ यूँ ही नही घर से निकले हैं ..............  महोब्बत में सारे बाज़ार तुम्हें आवाज़ नही देंगे वादा करते हैं तुम खुद बाहों में भर कर महोब्बत का इज़हार करोगे ये दावा करते है..........

लोग कहते है रोशनी से उजाला होता है ,

लोग कहते है रोशनी से उजाला होता है , हम कहते हैं जहाँ आप आ जाओ , वहाँ अंधेरे में आफताब खुद रोशिनी के साथ होता है .................

क्या खूब कहा है किसी ने

क्या खूब कहा है किसी ने कि तू मेरे लिए मुझसे नही तू खुद के लिए मुझसे प्रेम करता है, जिन साँसों को तू मेरे नाम कर देने का दावा करता है , वो भी तू खुद के लिए ही भरता है .............

मुस्कुराता हुआ चेहरा देख

मुस्कुराता हुआ चेहरा देख मैं उसके करीब जैसे - जैसे चलता चला गया, उसके गालों के मोती की चमक का राज़ आँखों से छलकता हुआ दिखता चला गया , खामोशी उसकी कहानी कह रही थी  उसके करीब जा कर एहसास हुआ  वो कितना कुछ सह रही थी .....

माँ ज़िंदा है तेरी तू भूल गया

माँ ज़िंदा है तेरी   तू भूल गया सावन का झूला तुझे याद है माँ का आँचल भूल गया ..... बारिश की छम-छम याद है  माँ की लोरी भूल गया , जिसने तुझे कलेजे से लगा कर रखा  तू उसे गले लगाना भूल गया , जो कान तेरी आवाज़ को तरसते थे  तू उन्हें आवाज़ लगाना भूल गया, माँ ने तेरे लिए सब कुछ छोड़ा तू उसे छोड़ कर चल दिया माँ तुझे समझती नही एक पल में ही बोल गया  ए माँ के दुलारे बारिश की बूँदों से तू माँ के आँसुओं को तोल गया............ तू जीना नही भूला माँ ज़िंदा है तेरी तू भूल गया 
माँ ज़िंदा है तेरी तू भूल गया सावन का झूला तुझे याद है माँ का आँचल भूल गया ..... बारिश की छम-छम याद है माँ की लोरी भूल गया , जिसने तुझे कलेजे से लगा कर रखा तू उसे गले लगाना भूल गया , जो कान तेरी आवाज़ को तरसते थे तू उन्हें आवाज़ लगाना भूल गया, माँ ने तेरे लिए सब कुछ छोड़ा तू उसे छोड़ कर चल दिया माँ तुझे समझती नही एक पल में ही बोल गया ए माँ के दुलारे बारिश की बूँदों से तू माँ के आँसुओं को तोल गया............ तू जीना नही भूला माँ ज़िंदा है तेरी तू भूल गया

मेरे सपनो को वो पर लगाती

मेरे सपनो को वो पर लगाती संग अपने वो मुझे मेरे सपनो से मिलवाती मेरी बातों को वो इशारे से समझ जाती कभी कभी तो वो मुझे - मुझसे ही मिलवाती  बेटियों से जीवन की हर काली खिल जाती ये बेटियाँ नसीब वालों को ही मिल पाती.... सारे जहाँ की खुशियाँ वो अपने स्नेह से दे जाती माँ होने का एहसास ये बेटियाँ ही समझ पाती....... खुश हूँ अगर मैं बिटिया हूँ खुशनसीब हूँ अगर मैं बिटिया की माँ हूँ .......
मेरे सपनो को वो पर लगाती संग अपने वो मुझे मेरे सपनो से मिलवाती मेरी बातों को वो इशारे से समझ जाती कभी कभी तो वो मुझे - मुझसे ही मिलवाती  बेटियों से जीवन की हर काली खिल जाती ये बेटियाँ नसीब वालों को ही मिल पाती.... सारे जहाँ की खुशियाँ वो अपने स्नेह से दे जाती माँ होने का एहसास ये बेटियाँ ही समझ पाती....... खुश हूँ अगर मैं बिटिया हूँ खुशनसीब हूँ अगर मैं बिटिया की माँ हूँ .......

मैं फिर भी अकेला हूँ

मैं फिर भी अकेला हूँ कलयुग में जी रहा हूँ मीलों लंबे रास्ते नाप रहा हूँ जो मिलता है उसके दिल में झाँक रहा हूँ मैं फिर भी अकेला हौं ........... भीड़ का हिस्सा हूँ कई ज़ुबानों का किस्सा हूँ साथ है मेरे ......मेरे ही फ़ैसले , फिर भी जाने क्यों पिसता हूँ मैं अकेला हूँ, हिम्मत भी है निडर भी हूँ , जहाँ जाना चाहूं अगले पल उधर ही हूँ , वक़्त का भी साथ है मैं फिर भी अकेला हूँ , रोज़ तूफ़ानो से टकराता हूँ जैसे तैसे निकल जाता हूँ अपना अनुभव सबको बतलाता हूँ मैं फिर भी अकेला हूँ, नित नई किर्णो का अहसास करता हूँ जो है उसमे विश्वास रखता हूँ ना जाने वो कौन सा बिंदु है जिसकी बेड़ियों से मैं खेला हूँ... जिसके अहसास के समक्ष मैं आज भी खुद को पाता अकेला हूँ ....

हम हमारे ही घुनेगर हैं हम हमारे ही ग़ालिब है ............

खुद से महोब्बत करना सीख लिया हमने अब धोका खाने के डर से आज़ाद हैं अब वक़्त और हालात सब अपने है  मान लो तो हक़ीक़त वरना सब सपने है फ़र्क सिर्फ़ इतना है ................  तब खुशियों के हम गुलाम थे अब मलिक है हम हमारे ही घुनेगर हैं हम हमारे ही ग़ालिब है ............

हमारे कर्मों का ही सारा घपला था.....

नसीब से खिले थे हम नसीब में थे कुछ गम, नसीब में थे सुख नसीब में था कुछ कम ..... सिर्फ़ देखने का नज़रिया बदला था हमारे कर्मों का ही सारा घपला था............. sonalinirmit.com

युहीन नही महोब्बत में उनकी हम डूब जाया करते हैं

युहीन नही महोब्बत में उनकी हम डूब जाया करते हैं क्या कहे...... जब जब वो देखते हमारी ओर हम जी जाया करते हैं जिन महफ़िलों में उनका ज़िक्र हो हम खुद को वहाँ महफूज़ पाया करते हैं , क्या कहे...... उनका हाथ हो हाथ में हमारे तो हम खुदा से मिल आया करते हैं .....

शक्ति खुद की जब पहचानी विश्वास मिला ज़िंदगी ख़ास है एहसास मिला .......

शक्ति खुद की जब पहचानी  विश्वास मिला ज़िंदगी ख़ास है एहसास मिला .......