Anubhav


                                                                                                    
आशिक की सच्ची आशिकी को हम 
पहचान नहीं पाए 
वो बेपनाह प्यार लुटाते रहे हम पर 
और हम नादान
 सच्ची मोहब्बत को 
अंजाम दे नहीं पाए
तुमको खुद तो इतना सा भी बर्दाश्त नहीं 
और हम पर क्या गुजरती है 
इसका रत्ती भर भी एहसास नहीं 
हर पल में हम अक्सर टूट जाते है
ये सोच कर की तुमको हमारी प्यास नहीं 
और फिर हम उठाते हैं खुद को
 इस विश्वास से
 वो क्या समझे गे हमें 
जब हमको 
अब खुद पर ही विश्वास नहीं
हां एक वक़्त था
 जब साथ थे हम
 एक वक़्त आज है
 नहीं है हम एक दूजे का संग
 शिकायत ना उन्होंने की
 सफाई ना हमने दी 
चुपचाप स्वीकार ली 
रिश्तों में नमी 
आज सोचूं तो लगता है 
शायद हमारे समझने में ही
 रह गई होगी कोई कमी
अब इक तस्वीर है
बस तकदीर में नहीं है जो प्यार से भरी है।
बस हाथों की लकीर में नहीं है

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