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Showing posts from June, 2016

ये केसा मोह का दल दल है

ये केसा मोह का दल दल है जिसमें कोई संतुष्ट नहीं, एक लालसा की अग्नि है जो हर पल भड़ती जाती है जीवन में सरलता कहीं नज़र नही आती है, सुकून नहीं केवल है बोझ, जीवन को जीना भूल गए जीवन काटने लगे हैं लोग........

ख्वाहिशे बेकसूर हैं

ख्वाहिशे बेकसूर हैं उन्हें नही पता कि हम मजबूर हैं 

चुप रहने का ये मतलब नही कि मैं तुम्हें चाहता नहीं

चुप रहने का ये मतलब नही कि मैं तुम्हें चाहता नहीं चुप रहने का ये भी मतलब है कि मैं तुम्हें इतना चाहता हूँ कि कह पाता नहीं ..............

रूबरू हुआ जबसे तू मन मेूं जागी कई आरजू

रूबरू हुआ जबसे तू मन मेूं जागी कई आरजू कि कोई तो है जो मुझे चाहता है इस कदर जिससे मैं थी अब तक बे-खबर कहाँ से आया कौन है तू हर साँस में झलके तेरी क्यों मेरी खुशबू अब धड़कने भी कहने लगी है तू ही है बस तू ही तू जिसके इन्तजार में तड़प रही थी अब तक मेरी हर आरजू रूबरू जब से हुआ तू मन से जागी कई आरजू दिल कह रहा है तूझसे तू थाम ले मेरी बाहें ले चल मुझे जहाँ चाहे तू संग चलूँगी तेरे जहाँ जाएँगी तेरी राहें तुझसे मिलकर है मेरे मन को मिली वो खुशी जिसको पाने से मैं अब अधुरी ना रही मुझे तृप्त कर मुझमें समा जा तू क्योंकि तू ही मेरा प्यार है

सवाल करते रिश्ते

सवाल करते रिश्ते की क्या ज़रुरूई है? किसी के पास होना या उसके साथ होना जवाब में बहुत खूबसूरत सवाल मिला ज़िंदगी कब चलती है? साँसे पास हो जब या साथ हो जब........

माँ के हिस्से में आँसू क्यूँ आ जातें हैं

माँ के हिस्से में आँसू क्यूँ आ जातें हैं जब बच्चे बड़े होते जाते हैं काश समझे कोई इस बात को कुछ पल के लिए ही सही पर समझे माँ के एहसास को.............

जि़न्दगी क्या है एक मेला है

जि़न्दगी क्या है एक मेला है जिसमें हर आदमी आखिर में अकेला है जो मुश्किलों में उलझ जाए उसके लिए वो एक झमेला है और जो इन्हें पार कर ले उसके लिए हर रोज एक नया सँवरा है सुख-दुख यहाँ भगवान ने सभी को बाँटा है परन्तु दुःख के समय हम ऐसा क्यों सोचते है कि इसके लिए भगवान ने हमें ही छाँटा है क्यों हम इतने स्वार्थी बन जाते है कि खुशी के पलों को अपना हक़ जानते है और दुःख के पल में दूसरों को उसका कारण मानते है समझ कर सोचो तो जानो केसा विचित्र है ये इन्सान जो भूल जाता है जि़न्दगी देने वाले को और खुद को समझने लगता है भगवान

सोचा एक दिन जी कर देखें तेरे बिन

सोचा एक दिन जी कर देखें तेरे बिन पर क्या बताउँ केसे था काटा, जहाँ तक नज़रें थीं वहाँ तक था सन्नाटा , हर चीज़ अपनी जगह पर ही थीं पर उजाले मे कमी थी, प्रतिदिन की भाँती निरंतर चल रहा था सब पर इल्म ना हुआ कि कब दिन शुरू और ख़तम हुआ कब, कुछ ही घंटे काफ़ी रहे सब समझने के लिए हर चीज़ को प्रेम चाहिए ज़िंदा रखने के लिए…….