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Showing posts from February, 2017

ज़माना सोचता है

ज़माना सोचता है अब ठहर जाएगी ज़िंदगी हमारी क्योंकि उन्होने हमारे दरवाज़े पर ताला लगा दिया पर वो नादान हमारी राहों से परेशान क्या जाने कदमों से तो हम दुनिया के लिए चलते हैं, कलम ने बहुत पहले ही हमें दिल से चलना सिखा दिया ........

तुम्हारी शिकायतों की चिट्ठी पढ़ कर

तुम्हारी शिकायतों की चिट्ठी पढ़ कर ऐसा लगता है कुछ पल और ऐसे ही जी लें क्योंकि खुद को इसके हिसाब से चलाने के बाद भले ही तुम हमे चाहने लागो पर हम खुद को चाह नही पाएँगे

आज फिर दिल बहुत उदास है

आज फिर दिल बहुत उदास है उन रिश्तों के धागे उलझ गए हैं जो दिल के बहुत पास हैं, माना के कभी कभी अच्छी होती हैं दूरियाँ पर पाता तो चले आख़िर क्या बात है, क्योंकि कई बार हम बिन कहे समझ पाते नही ये बात उन्हें समझा दे कोई.............

वाह रे ए वक़्त

अजीब अजीब से पहलुओं से कई बार कुछ इस तरह सामना हो जाता है चलते चलते रास्तों पर होसला डगमगा जाता है, जिस सोच से कभी नही घबराएँ हों, जिस सोच से कभी नही घबराएँ हों........... उस के आगे सिर , झुकाया जाता है मजबूरन ज़ुबा तो स्वीकार कर लेती है पर ये मन उसे स्वीकार नहीं कर पाता है वाह रे ए वक़्त तू भी किस किस तरह पलट कर आता है......... पल में ज़िंदगी को तमाशा दिखा जाता है..........

ये नज़र लगना क्या होता है ?

ये नज़र लगना क्या होता है ? इस शब्द को तलवार बना आदमी क्या क्या बोता है, और खुल के मुस्कुराने वाले पलों को खोता है  जश्न ना मनाओ नज़र लग जाएईगी खुशी को छुपाओ दुनिया को खबर लग जाएगी कुछ मत करो बस अरमानों को पोटली में बाँध कर तालें में धरों, पर ये केसी सोच है इस मन घड़न रचना के दायरे में लोग क्यों रहते बेहोश हैं, जैसे - बेटी ने लिया जन्म चलो कोई बात नही पर ना माना जश्न आख़िर क्यों ? क्यों ना खुशियाँ मनाएँ हम खुशियों के गीत गाएँ हम,  इस नज़र के भंवर में वँस कर अपने अरमानों को क्यों दफ़नाएँ हम, सब कुछ देने और लेने वाला वो परम पिता एक ही है जब उसने पृथ्वी की सुंदरता रचते हुए ना सोचा की नज़र लग जाएगी तो हम क्यों खुशियाँ बाँटते हुए सोचे की दुनिया को खबर लग जाएगी हमारी खुशियों को नज़र लग जाएगी , ये सब बेकार की वो बातें हैं जिनको दूसरों पर थोप कर हम केवल उनके दिलों को दुखाते हैं

उनकी खुशी थी हमारी ज़िंदगी

उनकी खुशी थी हमारी ज़िंदगी जो पसंद था उन्हें हम करते थे वही बहुत खुश थे क्या बताएँ, हर ओर लगता था हवाएँ हमें ही देख देख मुस्कुराएँ एक दिन उनकी ज़िंदगी की किताब लगी हमारे हाथ, सोचा चोरी से पढ़ कर एक बार फिर उनके नाम का सिंदूर माँग में भर कर, उन्हें झूम के दिखाएँगे उनके मन की बात हम खुद उन्हें पढ़ कर बतलाएँगे चंचल मन के संग समा भी बेफ़िक्र था अचानक थमा सब क्योंकि खुद को हम उस किताब में खोज रहे थे जिसमें हमारे नाम का ज़िक्र भी ना था............

जीवन को जन्म देने वाली माँ को

लोग हमें कमज़ोर समझते हैं जीवन को जन्म देने वाली माँ को लोग कमज़ोर समझते है छाती से लगा कर दूध पिलाने वाली माँ को लोग कमज़ोर समझते हैं, जिस माँ के आशीर्वाद में परिस्थिति को बदलने की ताक़त है लोग उस कमज़ोर समझते हैं, जो किसी के नाम का माँग में सिंदूर भर, पल में अपना सब कुछ उस पर न्योछावर कर देती है लोग उसे कमज़ोर समझते हैं, देवियों के रूप में पूजे जानी वाली नारी को लोग कमज़ोर साझते हैं शर्म आती है ये सोच कर नारी के कोक से जन्म लेने वाले लोग ही नारी का करते नही सम्मान और खुद को बताते हैं इंसान...........

वक़्त ने ज़ख़्मों के साथ मल्हम भी भेजी थी

वक़्त ने ज़ख़्मों के साथ मल्हम भी भेजी थी वो तो हम ही ख़ुदग़र्ज़ निकले जो उसे अपना हक़ समझ बैठे, वक़्त का क्या है कसूर वो तो खुद ,हमारे कर्मों के आगे है मजबूर, फिर भी हमसे पियार करता हर दिन नई रोशनी से हमे भरता , और एक हम हैं की उसकी मल्हम को अपना हक़ जान ज़माने को कहते  वक़्त ने मुझे पहचान लिया अब तू भी पहचान ..................

कुछ मेरे हिस्से में डाल दे

कुछ मेरे हिस्से में डाल दे ए खुदा  ना देख सकता मैं उसको  तड़प्ता हुआ, मैने उससे सिर्फ़ पियार ही नही किया उसे अपना खुदा माना है, मुझे हर हाल मे उसका साथ निभाना है, जिन कर्मों को भुगत रही है वो जिस दर्द भरे रास्ते से गुज़र रही है वो, मुझे उन रास्तों पर चलने की इजाज़द देदे ए खुदा मुझे मेरी महोब्बत को निभाने की इबादद देदे...........

दोस्त

दोस्त हम भी उस आग में कूदना चाहते हैं जिसमें तू जल रही है जलती मोम की तरह तड़प कर पिघल रही है जानते है हम की तू कमज़ोर नही, तुझे फिर कोई ठुकराए हमे बर्दाश नही, जबकि  भरोसा है हमें तुझ पर पर अभी तेरे आशिक पर नही........... कि कभी छोड़ ना दे तुझे वो मझधार में चोट ना खाए तू फिर किसी के पियार में, तू चलती जा तूफ़ानो को बनना पड़ेगा फ़िज़ा बेफ़िक्र रह ना दिखेंगे तेरी राहों पर तुझे हमारे कदम तेरे साथ इस तरह चलते रहेंगे हम, तेरी राहों पर बिछे काँटों की हमे परवाह नही परवाह है हमे.......... तेरी मंज़िल की, अब यूही नही कोई खोल पाएगा चाबी तेरे दिल की............

रोज़ सपनों को धागों से सीती हूँ

रोज़ सपनों को धागों से सीती हूँ एक पूरा होते ही दूसरे पर आस लगाए जीती हूँ, आज सोचती हूँ तो लगता है बड़ा ही अजीब है ये इच्छाओं का सिलसिला एक से दूसरे में कब बदल जाता है पता नही और भूल जाते उसे जो है मिला..........