Anubhav
मैंने बातों मैं उलझा लिए
फूलों के जगह खुद कांटे उगा लिए
संस्कारों की आज के युग में
बड़ी सीधी सी परिभाषा है
खुश वही है जिसको
किसी से तो क्या
खुद से भी नहीं कोई आशा है
दिल में आंसू हैं
पर आंखों में नमी नहीं
में चल रहा हूं पर ज़िन्दगी थमी कहीं
वक़्त है। पर मिल नहीं रहा
ऐसा कौन सा हो गया गुनाह जो दिख नहीं रहा
दिल रोना चाहता है
तो महफिलों से मुलाकातें हैं
कहना चाह रहे हैं
जो जाने क्यों केह नहीं पाते हैं
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