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Showing posts from December, 2018

अब लगता है मझधार में ही ठीक था कम्सेकम उलझे सवालों को सुलझाने में व्यस्त तो था......... खाली बैठा ..... तो वक़्त को भी बर्दाश नही….

अब लगता है मझधार में ही ठीक था कम्सेकम उलझे सवालों को सुलझाने में व्यस्त तो था......... खाली बैठा ..... तो वक़्त को भी बर्दाश नही ….

खुद की तलाश में खुद को तराशना चाहता हूँ भीतर छुपे सत्य के साथ मैं खुद को लेकर भटकना चाहता हूँ.................. क्योंकि ढूँढ है उसकी नाव पर बैठा हूँ मैं जिसकी , वो कहता है तेरे भीतर हूँ तो मुझे छवि दिखती है किसकी...............

खुद की तलाश में खुद को तराशना चाहता हूँ भीतर छुपे सत्य के साथ मैं खुद को लेकर भटकना चाहता हूँ.................. क्योंकि ढूँढ है उसकी नाव पर बैठा हूँ  मैं जिसकी , वो कहता है तेरे भीतर हूँ तो मुझे छवि दिखती है किसकी...............

अब वक़्त से क्या शिकायत करूँ आख़िर में ...............मल्हम तो वो ही लगाता है.........

अब वक़्त से क्या शिकायत करूँ आख़िर में ...............मल्हम तो वो ही लगाता है.........

हम तज़ुर्बे से निखरते हैं उम्र से नही हम अपनो से बिछड़ते हैं कर्म से नही........

हम तज़ुर्बे से निखरते हैं  उम्र से नही हम अपनो से बिछड़ते हैं  कर्म से नही........

मंज़िल भले ही नज़र ना आए तू हिम्मत कम ना करना, भले मजधार में फँस जाएँ कदम तू स्वॅम से जंग ना करना , यदि एश्वर भी परीक्षा लेने आए तू विश्वास को अपने भंग ना करना बस अटल अडिग चलते चले जाना मुसाफिर मंज़िल पर पहुँच कर ही नया जन्म है लेना ..........

मंज़िल भले ही नज़र ना आए तू हिम्मत कम ना करना, भले मजधार में फँस जाएँ कदम तू स्वॅम से जंग ना करना , यदि एश्वर भी परीक्षा लेने आए तू विश्वास को अपने भंग ना करना बस अटल अडिग चलते चले जाना मुसाफिर मंज़िल पर पहुँच कर ही नया जन्म है लेना ..........

खुद को बेहतरीन बनाने की चाह में बध से भत्तर हो गया, मैं जैसा था वैसा भी ना रहा ज़माने के हिसाब से चल नही पाया और खुद को इस कश्मक्श में कहीं भूल आया.......

खुद को बेहतरीन बनाने की चाह में बध से भत्तर हो गया, मैं जैसा था वैसा भी ना रहा ज़माने के हिसाब से चल नही पाया और खुद को इस कश्मक्श में कहीं भूल आया.......

हारे वहीं है जो लड़े हैं जीते वहीं हैं जो हर हाल में खडें हैं............

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वो चेहरा जिससे महोब्बत है वो रूह को मिलता नही,

दिल मेरा भटकता है वो ढूँढे उसे हर कहीं वो चेहरा जिससे महोब्बत है वो रूह को मिलता नही, बातें हैं मुलाक़ातें भी है खुवाबो में पर मन को वो झिलता नही हम भी अब ज़िद पकड़ कर बैठे हैं देखें महोब्बत का हमारा फूल कैसे खिलता नही...........

दिल की निगाहों से एक बार हमारी तरफ देखो तो सही यक़ीनन इश्क़ हो जाएगा................

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दूरियाँ इतनी बढ़ा दी तुमने कि अब पास आने से भी डर लगने लगा है तुम्हारी ओर बढ़ता हर एक कदम भँवर् में खड़ा है.........

दूरियाँ इतनी बढ़ा दी तुमने कि अब पास आने से भी डर लगने लगा है तुम्हारी ओर बढ़ता हर एक कदम भँवर् में खड़ा है.........

ता उम्र यूँ ही एकतरफ़ा महोब्बत में गुज़ार देंगे

ख़याल है तुम्हारा हमारे हर अफ़साने में फिर क्यों आते हैं तुम्हें मज़े हमे सताने में, रूबरू हो जातें है गर तो मस्त दिखाते हो खुदको महफ़िल जमाने में जाने क्या मज़ा आता है तुम्हें हमे सतातने में, एक बार आँखों में आँखें  डाल कह दो महोब्बत नही है तुम्हें इस दीवाने से यकीं दिलाते है निकल जाएँगे वहाँ से किसी भी बहाने से....... ता उम्र यूँ ही एकतरफ़ा महोब्बत में  गुज़ार देंगे इतना नूर बसा कर रखा है तुम्हारा अपने दिल में सारी ज़िंदगी उस प्यार पर वार देंगे...................

बेगैरत ना तो वक़्त है ना ही है किसी अपने का दोष बेगैरत निकली हमारी खुद की बदलती हुई सोच................. sonalinirmit

बेगैरत ना तो वक़्त है ना ही है किसी अपने का दोष बेगैरत निकली हमारी खुद की बदलती हुई सोच................. sonalinirmit

खूबसूरत है हर वो दिल जो किसी के मन की बात समझ पाता है, वरना आज के दौर में तो इंसान अपनी बात कह कर भी किसी को समझा नही पाता है........

खूबसूरत है हर वो दिल जो किसी के मन की बात समझ पाता है, वरना आज के दौर में तो इंसान अपनी बात कह कर भी किसी को समझा नही पाता है........

हम जिनके इंतेज़ार में बैठें हूँ वो अब तक तेरे दिल में क्यूँ रहतें हैं ...........

अजब सी परिस्थितियों में हम रहते हैं आँख से आँसू ना बाहर आते ........ ना अंदर बहते है धुँधला सा हर नज़ारा दिखता है तो आँसू ही हमसे कहते हैं कि हमें दोष देने की बजाए बस इतना बता दे.... हम जिनके इंतेज़ार में बैठें हूँ  वो अब तक तेरे दिल में क्यूँ रहतें हैं ...........

वाकिफ़ नही हुआ अभी तक तेरे असल अंदाज़ से ए ज़िंदगी, जब जब आगे बढ़ कुछ नया अपनाता हूँ किसी नई सोच के आगे फिर खुद को पता हूँ ........................

वाकिफ़ नही हुआ अभी तक तेरे असल अंदाज़ से ए ज़िंदगी, जब जब आगे बढ़ कुछ नया अपनाता हूँ किसी नई सोच के आगे फिर खुद को पता हूँ ........................