पता नहीं चला ना कब
इस मोबाइल की लत लग गई
फिर चाहे वजह कोई भी
ये लत हद कर गई
वक़्त नहीं था ना तुम्हारे पास
लो अब वक़्त ही वक़्त है
फिर भी छूटता जा रहा है सब
कर लो क्या करोगे अब
वो मंजिल खुद भी गुमराह थी
जिसकी मुझको चाह थी
आज जब बिना चाह की मंज़िल की तलाश में चला
कमाल हो गया जो चाहिए था वो सब मिल
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