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Showing posts from January, 2019

रिश्ते तोड़ कर जीतेजी वो पहुँचा देता है शमशान फिर मैईयत पर पहुँच कर कौन सा रिश्ता निभाता है इंसान.........

रिश्ते तोड़ कर जीतेजी वो पहुँचा देता है शमशान फिर मैईयत पर पहुँच कर कौन सा रिश्ता निभाता है इंसान.........

कोशिश करने वालों के लिए ज़िंदगी में कभी- कमी नही होती......... उनके लिए धरती भी कभी थमी नही होती........... कोशिश करने वालों के खुवाबों में कभी नमी नही होती क्योकि उनकी सोच कभी जमी नही होती........... कोशिश करने वालों के होसले इस कदर बुलंद होते हैं यही कारण है एसे अजूबे चंद होते हैं और हम उनके पद चिन्हों के संग होते हैं..........

कोशिश करने वालों के लिए ज़िंदगी में कभी- कमी नही होती......... उनके लिए धरती भी कभी थमी नही होती........... कोशिश करने वालों के खुवाबों में कभी नमी नही होती क्योकि उनकी सोच कभी जमी नही होती........... कोशिश करने वालों के होसले इस कदर बुलंद होते हैं यही कारण है एसे अजूबे चंद होते हैं और हम उनके पद चिन्हों के संग होते हैं..........

सीमा पर बैठे देश के जवानो को भारत के अनमोल रतन जो छू गए आसमानो को, और जो हर पल तान के बैठे रहते हैं बुध्धि और बल से अपनी कमानो को, उन सभी को सम्मान सभी को गणतंत्र दिवस का सलाम !!!

सीमा पर बैठे देश के जवानो को भारत के अनमोल रतन जो छू गए आसमानो को, और जो हर पल तान के बैठे रहते हैं बुध्धि और बल से अपनी कमानो को, उन सभी को सम्मान सभी को गणतंत्र दिवस का सलाम !!!

हर मज़ार पर घर तेरा ही है हर दुआ में ज़िक्र तेरा ही है , तू है इसलिए उमीद है फिर भी सांसो को इंतेज़ार तेरा ही है,

हर मज़ार पर घर तेरा ही है हर दुआ में ज़िक्र तेरा ही है , तू है इसलिए उमीद है फिर भी सांसो को इंतेज़ार तेरा ही है, तू उस सत्य में है जिसकी कोई परिभाषा नही तू उस होनी में है जिसकी किसी को आशा नही, तू ईमानदारी की उस रोटी में है जिस पर हमारी नज़र नही, तू वक़्त के उस सबर मे है जिसकी किसी को खबर नही, तू निरंतर चलने वाले मुसाफिर के होसलें में है हम पूजते उन पत्थरों में नही, तू मासूम की मासूमियत में है तू आसू के खारे पन में है तू पशु-पक्षी की ईमानदारी में है पूजा करने वाले पूजरी में नही...... तेरा अस्क कण-कण में है हम जिसमे ढूंड ते हैं बस उस ही में मिलता नही.......

खूबसूरत शब्द कलम के ज़रिए हर कोई उतार सकता है मगर वो केवल दोस्त ही होते हैं जो भई वाह कह कर हमारी शायरी को निखार सकता है...........

खूबसूरत शब्द कलम के ज़रिए हर कोई उतार सकता है मगर वो केवल दोस्त ही होते हैं जो भई - वाह कह कर हमारी शायरी को निखार सकता है...........

वक़्त की परिभाषा वक़्त ही जाने , वो अच्छा लगता है जब साथ देता है वही वक़्त बुरा लगता है जब साथ देने वालों का साथ छुड़ा देता.....

वक़्त की परिभाषा वक़्त ही जाने , वो अच्छा लगता है जब साथ देता है वही वक़्त बुरा लगता है जब साथ देने वालों का साथ छुड़ा देता.....

ज़िंदगी के कश कुछ इस तरह हर साँस में कंकर बाधा दे जिस तरह.....

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जो आज है वो कल ढल जाएगा, जो आज रुक गया वो कल चल जाएगा, तू कर आज किसी के साथ धोकेबाज़ी कल तू भी छल जाएगा, बैर का बीज भी तू बो कर देखले वो तेरे लिए ही पल जाएगा, इसलिए मुसाफिर किसी को सुख नही दे सकता कोई नही बस दुख मत देना आज नही तो कल ......तेरा रब तुझे ज़रूर मिल जाएगा..........

जो आज है वो कल ढल जाएगा, जो आज रुक गया वो कल चल जाएगा, तू कर आज किसी के साथ धोकेबाज़ी  कल तू भी छल जाएगा, बैर का बीज भी तू बो कर देखले वो तेरे लिए ही पल जाएगा, इसलिए मुसाफिर किसी को सुख नही दे सकता कोई नही बस दुख मत देना आज नही तो कल ......तेरा रब तुझे ज़रूर मिल जाएगा..........

जो आज है वो कल ढल जाएगा, जो आज रुक गया वो कल चल जाएगा, तू कर आज किसी के साथ धोकेबाज़ी कल तू भी छल जाएगा, बैर का बीज भी तू बो कर देखले वो तेरे लिए ही पल जाएगा, इसलिए मुसाफिर किसी को सुख नही दे सकता कोई नही बस दुख मत देना आज नही तो कल ......तेरा रब तुझे ज़रूर मिल जाएगा..........

जो आज है वो कल ढल जाएगा, जो आज रुक गया वो कल चल जाएगा, तू कर आज किसी के साथ धोकेबाज़ी  कल तू भी छल जाएगा, बैर का बीज भी तू बो कर देखले वो तेरे लिए ही पल जाएगा, इसलिए मुसाफिर किसी को सुख नही दे सकता कोई नही बस दुख मत देना आज नही तो कल ......तेरा रब तुझे ज़रूर मिल जाएगा..........

बादशाहो की ज़िंदगी से ये हम किस गुलामी के दौर में आ गए, पानी महँगा खून सस्ता , शिक्षा , संस्कृति सब लुप्‍त हो रही है बस भारी रह गया है बस्ता........

बादशाहो की ज़िंदगी से ये हम किस गुलामी के दौर में आ गए, पानी महँगा खून सस्ता , शिक्षा , संस्कृति सब लुप्‍त हो रही है बस भारी रह गया है बस्ता........

सफ़र में कोई अपना मिल जाना चाहिए मन की गुफ्तगू को गुनगुनाने का बहाना चाहिए , कदम ना रुक - साथ वो दीवाना चाहिए मंज़िलों में महफ़िल का ताना बना चाहिए , हर लम्हे को खूबसूरत तस्वीर बाना दिल मे बसाना - आना चाहिए , हम एकेले हों या महफ़िलों के मेले हो हर हाल मे मुस्कुराना चाहिए.......

सफ़र में कोई अपना मिल जाना चाहिए मन की गुफ्तगू को गुनगुनाने का बहाना चाहिए , कदम ना रुक - साथ वो दीवाना चाहिए मंज़िलों में महफ़िल का ताना बना चाहिए , हर लम्हे को खूबसूरत तस्वीर बाना दिल मे बसाना - आना चाहिए , हम एकेले हों या महफ़िलों के मेले हो हर हाल मे मुस्कुराना चाहिए.......

कही अनकही बातों के भँवर् में मैं खुद ही उलझा रहता हूँ मैं खुद की बनाई हुई कब्र में खुद ही ज़िंदा रहता हूँ नीला है आसमाँ फिर भी उसके नीले पन पर मैं सवाल उठता हूँ खुदा की रहमत हूँ फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ......

कही अनकही बातों के भँवर् में मैं खुद ही उलझा रहता हूँ मैं खुद की बनाई हुई कब्र में खुद ही ज़िंदा रहता हूँ नीला है आसमाँ फिर भी उसके नीले पन पर मैं सवाल उठता हूँ खुदा की रहमत हूँ फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ......

हम उन्हें समझते नही एसा वो कहते हैं ...... और हमे लगता है उन्हें समझते समझते हम खुद को खो बैठे हैं .............

हम उन्हें समझते नही एसा वो कहते हैं ...... और हमे लगता है उन्हें समझते समझते हम खुद को खो बैठे हैं .............

वक़्त को मन के भाव से मैं पन्नो में समेट लेता हूँ , हाँ मैं मानता हूँ वक़्त बड़ा बलवान है पर नज़र रखूं तो मैं उसकी चाल देख लेता हूँ , कि हम जो सोचते हैं वो उसे पलट भी देता है, पर जब हम ठान लेते हैं तभ वो खुस साथ भी देता है..................

वक़्त को मन के भाव से मैं पन्नो में समेट लेता हूँ , हाँ मैं मानता हूँ वक़्त बड़ा बलवान है पर नज़र रखूं तो मैं उसकी चाल देख लेता हूँ , कि हम जो सोचते हैं वो उसे पलट भी देता है, पर जब हम ठान लेते हैं तभ वो खुस साथ भी देता है..................

वो सिर्फ़ दोस्त ही थे जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए ....

ज़िंदगी के काफिले युहीन गुज़रते चले गए हम कभी धागो में पिरते तो कभी बिखरते चले गए , वो आते थे कभी कभी मिलने हमसे जो मन को भाते चले गए , वो सिर्फ़ दोस्त ही थे जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए .... उन्हे आँसू भी नही दिखे हमारे जिनके लिए हम बहाते चले गए, ख़ुदगर्रज़ी की बू आती थी हम तभ भी महोब्बत में उनकी बस्ते चले गए...... गिरते उठते चलते ज़िंदगी के सफ़र में   वो सिर्फ़ दोस्त ही निकले जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए .........

ग़लती कर बैठे हम अपनो को आज़माने की , चाह छूट गई अब किसी और को अपना बनाने की, अब हम एकेले हैं ज़िंदगी की भीड़ में और एकेले में तन्हाइयों की भीड़ है .......

ग़लती कर बैठे हम अपनो को आज़माने की , चाह छूट गई अब किसी और को अपना बनाने की , अब हम एकेले हैं ज़िंदगी की भीड़ में और एकेले में तन्हाइयों की भीड़ है .......