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Showing posts from November, 2017

खुद से ज़्यादा

खुद से ज़्यादा जब जब किसी और के लिए दिल निकाला सच कहूँ दुख ही पाला ..............

सागर की बूँद बनो सागर का उफान नही ,

सागर की बूँद बनो सागर का उफान नही , काम करो ऐसा की भीड़ में भी बना सको पहचान नई क्योंकि जिसके पास एहसास नही मर कर क्या.............. उसमें तो जीते जी भी जान नही ............... और जिसमें जान नही ............... उसका तो ज़िंदगी भी करती सम्मान नही ...............

तुम्हें खुश देख कर मैं खुश हूँ तुमसे दूर रह कर

तुम्हें खुश देख कर मैं खुश हूँ तुमसे दूर रह कर तुम्हें तक्लीफ हो वो मुझे गवारा नही मैने परिस्थिति को स्वीकार लिया ना शिकवा केरूँगा अब कभी , कि तुमने मुझे पुकारा नही बस याद रखना कि कोई दिन हमारा तुम्हे याद करे बिना हमने गुज़ारा नही , तुम्हारा सहारा नही तो अब किसी और का भी चाहिए नही ........

वो आँगन माँ बाबा का था

वो आँगन माँ बाबा का था जहाँ मैं बेवजह जघरड़ती थी कभी अकड़ती थी, फिर प्यार से पुकारा जाता था वो आँगन माँ बाबा का ही था जहाँ मुझे  ग़लतियाँ करने के बाद प्यार से समझाया जाता था, सपनों को सच होने का एहसास दिलाया जाता था बाबा की जेब में भले कुछ भी हो पर मुझे चाँद पर ले जाएँगे ये बतलाया जाता था, वो माँ बाबा का आँगन ही था जहाँ मेरे नखरे उठाने के बाद भी मुझे लाडो बुलाया जाता था..... वो आँगन मेरे माँ बाबा का ही है जहाँ आज भी मुझे एक नज़र देखने को बहाने से बुलाया जाता है वो आँगन मेरे माँ बाबा का ही है जहाँ आज भी मुझ पर प्यार लुटाया जाता है ........

मैने उस पर समय किया व्यर्थ जिसके लिए मेरा नही था कोई अर्थ ......

मैने उस पर समय किया व्यर्थ जिसके लिए मेरा नही था कोई अर्थ ......

कहाँ गई वो खुश्बू

कहाँ गई वो खुश्बू जो हर पल में घुली थी अपनो से मिली थी , हर लम्हें को मुस्कान का जाम समझ जीते थे मुश्किलें हो या सुकून........... पल खुशी से ही बीते थे , आज गुम हो गए वो रिश्ते जाने किस भीड़ में जिन्हें देख हम जीते थे............ मन को हार कर मनाया है ज़रूर पर मुड़ कर देखूं तो सच यही है की लम्हे बिन उनके हम फीके थे

रिश्तों को किसी की नज़र लगी है

रिश्तों को किसी की नज़र लगी है इस बेबुनियादी सोच पर यकीं कर हमारी सोच पर बरफ जमी है पिगल कर बह जाए तो हमें हमारी खामियाँ नज़र आ जाए और जो बैर का बीज जन्म ले रहा है शायद वो जन्म ना ले पाए ................

वक़्त की तालीम भरी है शिक्षा से पर हम जीना चाहते हैं भिक्षा से

वक़्त की तालीम भरी है शिक्षा से पर हम जीना चाहते हैं भिक्षा से 

जाने ज़िंदगी किस भीड़ में खो गई

जाने ज़िंदगी किस भीड़ में खो गई एक वक़्त था जब अपनी थी आज चिंताओं की हो गई , जो पल बेफ़िक्र जीते थे वो आज हमारी सोच के मोहताज हैं क्योंकि सिर पहना हमने केवल अंधकार का ही ताज है इसलिए धूप का आनंद बरसात का प्यार पतझड़ के रंग और सुख का सार सब बन गया व्यापार............ क्योंकि दुवेश और घ्रणा के आगे हम  इंद्रियाँ गए हार भूल गए अपने संस्कार इसलिए खो बैठे अपनो के प्रति प्यार

प्रकृति

कभी मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कभी मैं तुम्हारा विरोध करता हूँ, मैं अपने फ़र्ज़ से पीछे नही हटना चाहता हूँ मैं तुम्हे निरंतर देना चाहता हूँ, परंतु मैं मजबूर हूँ .............. प्रकृति

सुख था सुकून नही ...... चाह थी जुनून नही

सुख था सुकून नही ...... चाह थी जुनून नही ....... शायद इसलिए मंज़िल तक पहुँच नही पा रहा था शायद इसलिए ,लिए ही बार - बार कोशिश करने से घबरा रहा था , आज जब सुकून और जुनून का अर्थ समझ आया तो ठोकर खाए हर वक़्त में अनुभव ही नज़र आया मज़िल तक पहुँच जाउँगा खुद में इस विश्वास को पाया , ज़िंदगी में मज़िल ........ सुख और चाह से नही बल्कि सुकून और जुनून से मिलती है ये भी समझ आया ........

एक दिन गुस्से में मैं , माँ से यूही कह गया

एक दिन गुस्से में मैं , माँ से यूही कह गया कि तू मुझे समझती नही , माँ चुप खड़ी मेरी सारी बात सुनती रही माँ से जवाब ना मिलने पर मैने ही पूछा तुम चुप क्यों हो ? माँ मुस्कुरा कर बोली मैं चुप इसलिए हूँ क्योंकि मैं तुझे समझती हूँ ............

ज़िंदगी की ख़ासियत है

ज़िंदगी की ख़ासियत है  जब तक माँ बाबा का साथ है  चाहे जीवन में कोई भी परिस्थिति आए दो शक्स हैं धरती पर जिनका सदेव सिर पर हाथ है

कभी उलझी भी है कभी सुलझी भी है

कभी उलझी भी है कभी सुलझी भी है कभी मेरे हाथ में तुलसी भी है पर गुज़रते हालत में कई बार मैं खुद को संभाल नही पाता हूँ मेरे प्रभु मैं तुझमे मन बसाना चाहता हूँ रास्तों पर अक्सर मैं फिसल जाता हूँ मैं तुलसी की कीमत क्यों नही समझ पाता हूँ मैं तेरे सिवा अब और कुछ नही समझना चाहता हूँ मेरे मौला मेरे सद गुरु मुझे बना इस काबिल कि मैं तुझे अपने मन का मलिक बना, तेरे मन में जगह बनाना चाहता हूँ........