Life Experience
मैंने आजमाया
जो मस्त रहा
वहीं समस्त रहा
काश तू मेरी बात मान लेता
इस रूह में मेरी
मेरी भी जान बसी थी
पहचान लेता
नफरत पर ज़िम्मेदारियां भारी पड़ी
जिन अपनों ने मुझे गिराया था
शायद इसलिए मैं आज भी
फिर साथ उनके हूं खड़ी
जहां अपनों के महकमें बसते हैं
हम उन गलियों को छोड़ चले हैं
हालात हुए कुछ ऐसे
सांसे सुकून की थी जिनके साथ
हम उन रास्तों को सिकोड चले हैं
स्वीकार ली है अब मौत
ज़िन्दगी मान ली अब सौंत
बोज़ है अब हर निकाला
खोज है बस अब उसकी
बता दे कोई कहां मिलेगा
वो मौत देने वाला
Comments
Post a Comment