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Showing posts from January, 2017

धीमी धीमी चाल से जब तू आती है

धीमी धीमी चाल से जब तू आती है एक नशा बन कर छा जाती है धीमी धीमी चाल से जब तू लहराती है मेरे मन को और भी भाती है, तेरे इंतेज़ार में घड़ी इस कदर तकता हूँ मैं खुद में ही , खुद को झँकता हूँ, वो भी मुझे घूर घूर देख ,बंद हो जाती है मेरे अरमानों को, रोशिनी दिखा जाती है मैं समझता हूँ , तेरे आने का ये इशारा है तेरी आहट होते ही मानों मंज़िलों को मिलता, किनारा है ऐसा लगता है चारो और सजने वाली है महफ़िल, खुदा की रहमत मुझे बनाया तेरे काबिल झूमे समा मुस्कुराए लम्हा, रात चमके ऐसे जैसे सवेरा है तेरी कशिश में डूबने को बैठे संग मेरे मजनुओ का डेरा है, कैसे ब्यान केरूँ .....तेरे प्यार ने मुझे इस कदर घेरा है. धीमी धीमी चल से जब तू लहराती है मेरे मन को और भी भाती है.........

तुम्हारी खूबीओं के आगे फिसल गए

तुम्हारी खूबीओं के आगे फिसल गए खुदा के आगे बिचल गए, ऐसा क्या सोचा जो गुणों से भर तुझे तराशा इस कदर, की जिधर भी कदम रखे तू हो जाती खबर, हो जैसे जन्म जन्मों का नाता पर चाह कर भी ना जाने क्यों तुझे छूँ नही पता, माना तुझेमें कोई बात है पर...........चाँद मे भी दाग है, वहाँ तो हम पहुँच गए पर तेरे समीप एक अध्बुध सी आग है.......

गणतंत्र देश हिन्दुस्तान

गणतंत्र देश हिन्दुस्तान जिसकी ताकत हैं हमारे जवान उन सब को नमन करते हुए आप सबको गणतंत्र दिवस के मौके पर प्यार भरा सलाम. जय हिंद

केसे ब्यान केरूँ कि तुझसे कितना पियार केरूँ,

केसे ब्यान केरूँ कि तुझसे कितना पियार केरूँ, चाहत में तेरे ये दिल बेकरार तुझसे करने लगा हूँ में इतना पियार, जहाँ भी देखूं बस दिखे तू, कोने कोने में महके बस तेरी खुश्बू, तुझसे हर खुशी तू ही ज़िंदगी, वजह बन गई जीने की तू हो गया मुझ पर ऐसा जादू, रास्ता दिखाया तूने पियार का तो मज़िल भी देगी तू, इस ढाई अक्षर के शब्द में पूरी हुई हेर आरज़ू, बता मेरे सनम और केसे ब्यान केरूँ कि तुझसे कितना पियार केरूँ.....

माँ

माँ  माँ के आँचल से सिमट कर आँख भरती हैं क्यों देख उसका चेहरा मेरी उदासी ढलती है क्यों , क्या है ये रिश्ता कोई जाने ना............. क्या है ये रिश्ता   कोई जाने ना............. जब भी डरता दिल मुख से माँ ही ….. निकता है क्यों , उसके  चरणों में मुझको जन्नत मिलती है क्यों , क्या है ये रिश्ता कोई जाने ना क्या है ये रिश्ता   कोई जाने ना............. हाथ से उसके मैं खा कर दही निकल ता हूँ क्यों , बिन कहे जो समझ जाती माँ ही केवल क्यों , क्या है ये रिश्ता कोई जाने ना क्या है ये रिश्ता    कोई जाने ना............. दिन में जो तारे दिखला दे सिर्फ़ माँ है मेरी क्यों , गले लगा कर मुझे सैलती  माँ ही मेरी क्यों , जब चली जाती है वो इतनी याद आती है क्यों क्या है रिश्ता कोई जाने ना कौन हमे खींचता कोई जाने ना............ तुझेमे रब दिखता तू ना जाने मेरी माँ.........

मौसम के रंगों के साथ

मौसम के रंगों के साथ खेलने का तुम्हारे पास वक़्त नही, और बात बात पर इल्ज़ाम उस खुदा पर लगlते हो जिसके तुम खुद , भक़्त भी नही........

मैं तुम्हारा सहारा नही

मैं तुम्हारा सहारा नही तुम्हारा साथ बनना चाहता हूँ तुम्हारा किनारा नही किनारे पर तुम्हारे साथ पहुँचना चाहता हूँ, गर मुझे इस काबिल समझो तो बस याद कर लेना अपनी दिल की धड़कन पर, हाथ रख लेना, मैं हर लम्हा ,तुम्हारे साथ रहता हूँ तुम मेरी सांसो में बस्ती हो उदास हो तुम, तो मेरी दिल की धड़कन धीमी और तेज़ दौड़ती , जब हस्ती हो, मेरी महोब्बत को ,मत नापना मैं इतना इंतेज़ार ना कर पाउँगा जुड़ चुकी है मेरी साँसे, तुमहरी साँसों से मैं तुम्हारे बिना अब , जी ना पाउँगा, तुम जब तक मुझे आज़माना चाहो तुम्हारी मर्ज़ी है मेरे लिए अपने दिल पर कोई बोझ ना रखना बस यही मेरी अर्ज़ी है...............

जिन आंसुओं को आज अपने दबाया है

जिन आंसुओं को आज  अपने दबाया है उन्होंने ने ही आ कर मुझे सब बताया है , की हम किनारे की तलाश में बैठे हैं हमारे उफान के बीच , बंधे बाँध को तुड़वादो इन आंसुओं को किनारे से मिलवादो , क्योंकि  हम सैलाब बन , जिस घर में बैठे हैं उसके दिल का बोझ , उसके कंधे भी अब नहीं सहते हैं , उनको तो बेबसी ने जकड कर घेर लिआ है हमारे सब्र ने हमसे , मुह फेर लिआ है , पीड़ा होती है , बहुत सोच कर की क्यों ये खुद से , इस कदर लड़ रहा है और हमें भी बगावत करने पर मजबूर कर रहा है , हर उस सोच को घर में जगह दे बैठा है जो जीने की इच्छा को  , ज़िन्दगी से दूर कर रहता है , ओट  लो इन्हें इससे पहले ये इस आग में जल जाएं रोक लो इन्हें , इससे पहले ये मौत से मिल जाएं ..................

बहुत कुछ था कहने को

बहुत कुछ था कहने को पर कह नहीं पाए तेज़ रफ्ऱतार से भाग रहा था समुद्र पर हम बह नहीं पाए हिम्मत भी बहुत थी पर दिखा नहीं पाए सोचते ही रह गए कुछ कर नहीं पाए सब कुछ होते हुए भ ना जाने क्यों ये काले घने बादल के साए देखते ही रह गए पर हटा नहीं पाए।

उन लम्हों को समेट कर निकल पड़ा

उन लम्हों को समेट कर निकल पड़ा जिनमें अब तक था जकड़ा हुआ मेरी सोच कहीं अटक गई थी राह भटक गई थी, अपने ही घर की दीवारें मुझे गैर बतलने लगी थी,, पर जैसे ही उलझनों के भवर को तोड़ा ज़िंदगी फिर नई थी, आज यकीन हो गया ज़िंदगी हमारा साथ कभी नही छोड़ती ये तो केवल हमारी सोच है जो हमे तोड़ती.......

इन आँखों में जो दर्द है

इन आँखों में जो दर्द है उनका तू ही मर्ज़ है ये तेरे लिए ही तड़प रही है इन्हे पनाह दे, पर गुज़ारिश है इंतेज़ार की घड़ी को लंबा ना करना गर ये सुख गईं तो इन्हे फिर ज़िंदा ना करना, वक़्त की लगाई मल्हम को वक़्त के हाथ ही छोड़ देना, जिन रास्तों पर , फिर ये आँखें उम्मीद गड़ाए बैठीं हों तुम उन रस्तो से रूख मोड़ लेना, बेवफा ना समझूंगी ..तुम्हें ये रहा वादा समझ लूँगी की यहीं तक जुड़ा था हमारे प्रेम का धागा..............

समझो तो है ,रिश्तों में जान

समझो तो है ,रिश्तों में जान  सिर पर हो जैसे आसमान, माना की कई बार निभाना , नही होता आसान मगर जो निभाता है रिश्तों को , वही बना पाता है अपनी पहचान, क्योंकि जो खुद को ही नही जान पाया  उसे दुनिया क्या जानेगी जो किसी के लिए , सिर झुका नही पाया, उसे एकेले देख भी , क्या पहचानेगी क्योंकि सागर की बूँद हम तभी कहलाएँगे जब उसके रंग में मिल ............. उसको हर उफान से बचाएंगे हर हाल में साथ निभाएँगे यदि उड़ कर किनारे पर पड़े रहे तो, कुछ ही पल में सूख, कर बेवजूद, मिट जाएँगे....

वक़्त सही नही है ..........ये कहकर

वक़्त सही नही है ..........ये कहकर  हम हर बात को वक़्त पर डाल सुकून से बैठ जाते हैं, पर हम ये नही सोचते  कि ये हमारा अच्छा वक़्त ही तो होता है जो हमारी ख़ामियों को खुद पर ले हमें सुकून से बिठा देता है......

इन आँखों में जो दर्द है

इन आँखों में जो दर्द है उनका तू ही मर्ज़ है ये तेरे लिए ही तड़प रही है इन्हे पनाह दे , पर गुज़ारिश है इंतेज़ार की घड़ी को लंबा ना करना गर ये सुख गईं तो इन्हे फिर ज़िंदा ना करना , वक़्त की लगाई मल्हम को वक़्त के हाथ ही छोड़ देना , जिन रास्तों पर , फिर ये आँखें उम्मीद गड़ाए बैठीं हों तुम उन रस्तो से रूख मोड़ लेना , बेवफा ना समझूंगी ..तुम्हें ये रहा वादा समझ लूँगी की यहीं तक जुड़ा था हमारे प्रेम का धागा..............