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Showing posts from March, 2018

अब तो खुवाहिश है इन्हे ज़िंदा रह कर दिखलने की .

जीते जी अपना जनाज़ा उठते हुए देख लिया जब अपनों ने नज़रों से गिरा कर हमें फैक दिया अब और क्या उम्मीद करूँ अपनों से अब तो खुवाहिश है इन्हे ज़िंदा रह कर दिखलने की ........................ sonalinirmit.com

तू नहीं तो मैं क्यों हूँ

समुंद्र की लहरें अब उफान नहीं मारती जिस कश्ती पर मैं बैठा हूँ वो अब किनारे पर नहीं उतारती, कहाँ जाउँ कोई अब रास्ता दिखा दे मेरी अधूरी ज़िंदगी को खुदा से मिल वादे, एक जन्नत सा था जहाँ जब तक तू था यहाँ, तू नहीं तो मैं क्यों हूँ खुदा की इस जयास्ती को मैं क्यों सहुं........................

ना अल्फ़ाज़ है ना मुलाक़ातें हैं

ये कौन है जो दिल के जज़्बातों को पढ़ पाता है ना कभी देखा , ना बात की पर धड़कन की टिक - टिक को उसके........ मेरा दिल सुन पाता है, एक अजनबी सा चेहरा आसमाँ में नज़र आता है पहचानने की कोशिश करूँ तो लुप्‍त हो जाता नज़र अंदाज़ करूँ ........... तो नज़र आता है , ये केसी महोब्बत है ना अल्फ़ाज़ है ना मुलाक़ातें हैं बस रूह से रूह की बातें है उसकी बाहों का एहसास आँख बंद करूँ तो मिल जाता है मुस्कुरातीं हूँ तो वजूद सामने खड़ा नज़र आता है ........

मैं भारत की सीमा चलने वाली अमर हवा हूँ कोई आती - जाती घटा नहीं हूँ .................

मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो इंक़लाब लिख जाता हूँ मैं पहनूं कोई भी रंग एहसास तिरंगे का ही पाता हूँ कदम रख खड़ा जिस मात्र भूमि पर , उसके खिलाफ हर षधियंत्र को तोड़ देना चाहता हूँ , जसबातों को मेरे- मैं हर भारत-वासी में देखना चाहता हूँ, मर गया हूँ मैं .....तुम्हारे लिए पर मैं मिटा नही हूँ , मैं भारत की सीमा चलने वाली अमर हवा हूँ कोई आती - जाती घटा नहीं हूँ ................. वीर शहीद भगत सिंघ को समर्पित

लगा सूखे कुएँ में भी रब की मेहर छलकी ............

पहले सागर की हर बूँद में खुद को ढूंढता था जबसे खुद पर यकीन हुआ हर बूँद में खुद की पहचान पाता हूँ पहले कोने कोने में खुद के अक्स को देखने को तरसता था अब हर कोने में खुद को देख इतरता हूँ, बस ..................ज़रा सी सोच क्या पलटी लगा सूखे कुएँ में भी रब की मेहर छलकी ............

मैं भगवान नहीं हूँ

जिसको जो जब मन में आए कह देता है मैं दर्द दिखता नही हूँ इसका ये मतलब नहीं कि मुझे दर्द नही होता...... या मैं इंसान नहीं हूँ एक बार समझा दो भाई मैं भगवान नहीं हूँ ................ शुक्रिया

जय माता की जय माँ के स्वरूप को बनाने वाले विधाता की................

माँ सदैव ही घर में विराजमान है निरंतर प्रेम, आशीर्वाद, के साथ हमारे लिए माँ -बहन के रूप में मिली वरदान है , फ़र्क बस इतना है कि हम पूजा पत्थर की मूर्ति की करना चाहते हैं उसकी नही जो साक्षात्कार है आस्था पत्थर में रख कर खुश हैं उसमें नहीं जिसके लिए हम ही संसार हैं ..... प्रार्थना करते हैं मूर्ति से कि हे माता अपना आशीर्वाद बनाए रखना और अपनी जननी से कहते हैं वक़्त आ गया घर अब अलग अलग बसा लेते हैं क्योंकि तुमने हमें कभी नही समझना जाने हम किस माँ की पूजा करते हैं और किस का तिरस्कार जिस दिन समझ जाएँगे उस ही दिन से घर बन जाएगा मंदिर परिवार के रूप में दिखेगा संसार जय माता की जय माँ के स्वरूप को बनाने वाले विधाता की................

जहाँ भी देख रही थी दिख रहा था खुदा .............

रूह ने रूह का स्वागत किया जैसे ही मन ने उसको पुकारा पिया , साँसों की तरंगे उफान पर चॅढी आज खुवाहिशे आसमान की ओर बढ़ी , लगा वक़्त आज मेरे हाथ में है क्योंकि वो मेरे साथ में है , ज़िंदगी मुझसे खुश थी या मैं ज़िंदगी से.................. ये नही पता ....... जहाँ भी देख रही थी दिख रहा था खुदा .............

हम तो महोब्बत में उनकी कुछ इस तरह लुट गए हैं

हम तो महोब्बत में उनकी कुछ इस तरह लुट गए हैं कोई पता पूछे हमारा तो नाम उनका ही निकलता हैं कोई हाल पूछे हमारा तो तस्वीर उनकी दिखा देते हैं, कोई बात करना चाहे तो अफ़साने उनके सुना देते हैं, अब कोई पागल समझे या दीवाना....... फरक पड़ता नहीं बस नज़र उनकी हम पर टिकी रहे वरना दिल ये हमारा धड़कता नहीं................

वो वहीं है..............

कहीं कुछ है कहीं और कुछ है, कुछ ना कुछ हर कहीं हैं.............. बस नज़ारिया चाहिए जो जहाँ देखना चाहोगे वो वहीं है..............

माँ बाप को नए तरीके सिखाए जातें हैं

बदलते दौर में बदलाव आते हैं पर रिश्ते क्यों झूट जातें हैं , माँ बाप को नए तरीके सिखाए जातें हैं एकेले जीने को मजबूर बनाए जातें हैं ..................... sonalinirmit.com

सोच रहा गुनाह कर ही लेता हूँ थक गया हूँ खुद को बेगुनाह साबित करते करते

सोच रहा गुनाह कर ही लेता हूँ थक गया हूँ खुद को बेगुनाह साबित करते करते 

मैं जब भी जहाँ भी जैसे भी जन्म लूँ, खुश हूँ अगर बिटिया बनूँ

मैं जब भी जहाँ भी जैसे भी जन्म लूँ, खुश हूँ अगर बिटिया बनूँ मुझे डर नहीं ज़माने की मार का जीत का यार हार का , क्योंकि मैं जानती हूँ कि हम कमज़ोर नही हम जो जब ठान लें कर सकते हैं तभी ............. happy womens day 

वो पोंछ नहीं पा रहें हैं हम बहा नहीं पा रहें रहें हैं ........

कितने ही आँसुओं को समेट लिया ना मिला वो शक्स जिसने मेरी मुस्कुराहट के पीछे मुझे रोते हुए देख लिए , दोस्त हज़ारों है पर कोई गले नही लगा पा रहा जो चाहते हैं मुझे , उनको मैं कमज़ोर पढ़ता हुआ दिखा नही पा रहा क्यों हैं ये फासलें आँसुओं और अपनों के बीच में मन की हार और मन की जीत में , कि वो रुमाल लेकर बैठे हैं हम आँसुओं को वो पोंछ नहीं पा रहें हैं हम बहा नहीं पा रहें रहें हैं ........ धन्यवाद 

जैसा भी है मेरा प्यार सीधा साधा है ...................

क्या? यूँ ही इंतेज़ार में तुम्हारे बैठा हूँ? महोब्बत है तुमसे बार बार कहता हूँ कब तक मज़ाक समझ मेरे इश्क़ को नज़र अंदाज़ रखोगे ? आख़िर कब तक मुझे परखोगे ? कोई कमी लगती है तो बोल कर तो देखो बाल दूँगा खुद को फिर तोल कर देखो , छोड़ूँगा नही रहें तुम्हारी ये वादा है जैसा भी है मेरा प्यार सीधा साधा है ........................

सीमा पर बैठे सैनिकों के साथ साथ आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ

आओ मिलकर इस तरह मनाएँ होली गुलाल लगा बन जाएँ हमजोली, प्रेम से भरी भांग खिलाएँ बुराई पर अच्छाई के विजय गीत गाएँ, गुंजिया में भरे रिश्तों की मिठास जो है उसमे रखे  विश्वास, देश की उन्नति के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाएँ सीमा पर बैठे सैनिकों के साथ साथ आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ