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Showing posts from March, 2017

khud aa kar to zindagi bhi piyaar nahi karti

आशिकी बढ़ती गई

आशिकी बढ़ती गई जैसे जैसे हमारी शायरी से दागा देने वाले दोस्त कम हो गए जो दिल से नही, दिखावे के लिए जुड़े थे वो दूर हो गए........... और जो मन से चाहते थे पर कह नही पाते थे वो बहुत खूब - बहुत खूब कह करीब हो गए..........................

झुकना मुनसिफ़ समझा हमने

झुकना मुनसिफ़ समझा हमने क्योंकि रिश्तों का पल्ला भारी निकाला, हमने सोचा हम एकेले जी लेंगें पर इस सोच में घर हमारा खाली निकला, सही और ग़लत की परिभाषा हम जानते नही पर उनके बिना जीना मुश्किल निकला, अब चाहे वो हमें कुछ भी समझे हमने जब साथ निभाने की फिरसे ठानी......... तो हमारा मन भी हमारे साथ ही निकला....................

शहीदी दिवस के अवसर पर शहीदों के मन की बात कहना चाहूँगी .........

शहीदी दिवस के अवसर पर शहीदों के मन की बात कहना चाहूँगी ......... सरहदों से इश्क कर बैठे हैं इसलिए हम वही पर रहते हैं, ऐसा नही की हमारे परिवार में हमारा मन नही पर मक्खी भी किसी गैर मुल्क की सिर उठा कर सरहद को देखे वो हमे पसंद नही, बात जब मात्रभूमि की हो तो हमे किसी पर विश्वास नही इसकी खुशहाली बनाए रखने के सिवा हमारा कोई खुवाब नही, बल्कि अब खुवाहिश है कि मर कर भी रूह को रखें ज़िंदा ताकि थर थर कांपे हर वो परिंदा, मज़बूर करदें हर आतंक को सोचने पर की आख़िर लड़ना किससे है यहाँ तो सरहदें ओटें सेना ज़मीं पर है तो फ़िज़ाओं से लिपटी रूह में सेना ...............आसमाँ में ऐसी देश भक्ति ना देखी किसी जहाँ में सलाम कर रुख़ मोड़ लें भारत को जीतने का खुवाब छोड़ दें............... जय भारत

मिसाल बनाओ

वक़्त ने एक बार फिर

वक़्त ने एक बार फिर तुम्हें मेरी मंज़िल का किनारा बनाया है अब तो मुझे क़ुबूल कर लेना पहले तो तुमने मुझे ठुकराया है, मैने शिकायत तो तभ भी ना की थी मान लिया था मेरी महोब्बत में कमी थी, पर अब वफ़ा का पल्ला मेरा भारी है अंजाम अब भी जो हो याद रखना सनम.................... ये दीवानी हमेशा तुम्हारी थी..........तुम्हारी है........

बेवजह की नाराज़गियों से दिल कुछ इस कदर टूटा है

बेवजह की नाराज़गियों से दिल कुछ इस कदर टूटा है लगता है अब हर रिश्ता जूठा है, वो सब जो प्रेम ने बोया था जाने किस आग में झोंका है फिरसे हाथ बढ़ाने का इस बार मन नही होता है, पर कैसे जिएंगे ये सोच - सोच कर वही मन रोता है आज लगता है आदमी एहम के आगे वाकई छोटा है, मन का समुंदर  क्यों फूट फूट कर रोता है उँची छलाँग मार  मेरे अतीत को भिगोता है, हरा हुआ दिल फिर कहता है छोड़ माना ले तेरा रिश्ता छोटा है कदम कहते हैं नही अब नही ज़मीर भी कुछ होता है, ......................... आख़िर आदमी एहम में आकर रिश्ते क्यों खोता है.................

तुझे देखते रहना मेरे लिए ज़रूरी नही

तुझे देखते रहना मेरे लिए ज़रूरी नही तेरे दिल मैं जगह बनी रहे  है ज़रूरी, तू रोज़ एक बार दिल से याद करले जिसमे नही हो कोई मजबूरी, मैं समझूंगा मैं जी गया हर दिन का वो लम्हा जिस में तू मुझे याद करे मेरी टूटती साँसों को सी गया.............
तुझे देखते रहना मेरे लिए ज़रूरी नही तेरे दिल मैं जगह बनी रहे है ज़रूरी, तू रोज़ एक बार दिल से याद करले जिसमे नही हो कोई मजबूरी, मैं समझूंगा मैं जी गया हर दिन का वो लम्हा जिस में तू मुझे याद करे मेरी टूटती साँसों को सी गया.............. तुझे देखते रहना मेरे लिए ज़रूरी नही तेरे दिल मैं जगह बनी रहे है ज़रूरी, तू रोज़ एक बार दिल से याद करलेमैं समझूंगा मैं जी गया हर दिन का वो लम्हा जिस में तू मुझे याद करे मेरी टूटती साँसों को सी गया..............

आज कह दिया जमाने से

आज कह दिया जमाने से ना पूछो की मैं क्या चाहती हूँ ये लड़ाई मेरी खुद की है अब मुझे सहारा मत दो, जब चाहिए था तभ किसी ने परवाह ना की अब मैं फ़ैसला ले चुकीं हूँ तुम मुझे किनारा मत दो, मुझे समझ आ गया है कि रास्तों को उस दिन खुद ब खुद किनारा मिल जाता है जिस दिन कदमो को खुद का सहारा मिल जाता है.........

होली का उत्सव हो

होली का उत्सव हो गुंजिया के साथ गपशप हो रंगों से घुली  ज़िंदगी हो, आप सब को मिली हो चेहरे पर मदुहास हो, साथ आपके आपका विश्वास हो कार्य कल की बजाए आज हो, समय कोई भी रंग दिखाए आपको जो रंग पसंद हो उस ही का एहसास हो होली मुबारक

ईमानदारी के अंदर

ईमानदारी के अंदर छुपा मिलता है समुंदर , शायद इसलिए ही कमज़ोर लोग बेईमानी का रास्ता अपना लेते हैं और सच्चाई पर चलने वाले लोग ईमानदारी के रास्ते पर चल कर भी अपना रास्ता बना लेते हैं.............

दो पंक्तियों में

दो पंक्तियों में  बस यही कहना चाहूँगी  जब भी ,जहाँ भी, जन्म मिले सदैव औरत ही बनना चाहूँगी  वजह...... खुदा ने इतनी खूबसूरती भरी है इसमें जो संसार कभी पूर्ण रूप से देख नही पाएगा मगर हम खुद को खुश नसीब समझेंगे यदि खुदा हमे बार- बार उसका हिस्सा बनाएगा ..............

महकती है खुशबू उनके पैमाने से

महकती  है खुशबू उनके पैमाने से वो मुस्कुराते हैं हम पर जब गुज़रते हैं हम उनके शामयने से, गौर तो वो फ़ार्मा ते हैं हम पर पर जाने क्यों डरते हैं हमारी महोब्बत को आज़माने से हमने तो इकरार कर दिया था बीच मैखने में शायद दर गई वों उस वक़्त ज़माने से, हमने तो लिख दिया , तकदीर में हमारी उनका नाम अब उम्र भी काट जाए तो गम नही उनको ...............हमे अपना बनाने में, उनके इनकार में इकरार की तस्वीर में , हम खुद को देख चुकें हैं इसलिए लुफ्ट उठा रहीं हैं वो हमे सताने में, आशिक की आशिकी कभी छुपी नही छुपाने से जानती हैं वो तभी तो फ़ुर्सत नही है उन्हें इतरने से, बाहों में भर लेंगी कह गई थी फ़िज़ाएं हमे बहाने से पत्थर के महल को छोड़ कर आएँगी वो एक दिन हमारी महोब्बत से भरे ग़रीब खाने में...............

कसम है मुझे ए वक़्त

कसम है मुझे ए वक़्त अब तुझ पर भरोसा रख कर  नही बैठूँगा तुझे दोस्त समझ सोचता था तेरी दोस्ती के कारण किनारों से मिलता था, पर कुछ बातें ठोकर खा कर ही समझ आती हैं तू भी मेरा नहीं सिर्फ़ कर्मों का साथी है.......

अनजाने कभी कभी

अनजाने कभी कभी कुछ इस तरह टकराते हैं मुलाक़ातें कभी हुई नहीं शामें साथ गुज़री हों यूँ जसबात टकराते हैं