जब छोटा था तब लगता था.. मैं कब बड़ा होऊंगा ये घड़ी कब तेज़ी से मेरे साथ भागेगी.. मैं बड़ा भी ..हो गया घड़ी तेज़ी से भाग भी रही है पर अब मेरी नज़र जाने क्यों.... बचपन में झांक रही है..
मैंने ज़िन्दगी के साथ मन से सौदा कर लिया अब फेंके ले जितने मर्जी पत्थर मैंने मन में मिट्टी का पौधा भर लिया घुल जाएंगे सब और हमने उनसे भी खिलने का भी फैसला कर लिया... जिसको जो जब मन में आए कह देता है ... मैं दर्द दिखता नही हूँ.. इसका ये मतलब नहीं.... कि मुझे दर्द नही होता... या मैं इंसान नहीं हूँ एक बार समझा दो भाई मैं भगवान नहीं हूँ.. शुक्रिया
कहीं दर्द है तो कहीं दुआ है कहीं डोली है तो कहीं अर्थी है कहीं मजबूरी है तो कहीं चाह है ये दुनिया अद्भुत है... जो निकल गया ...सो निकल गया बस... वो उलझ गया जिसको सबकी परवाह है...
चांद की चाहत नहीं. .. जहां तुम हो हर इबादत है वहीं.. ये नज़ारा नहीं... खूबसरत तुम्हारा साथ है... मैं इक खूसूरत परिंदा हूं... जब तक तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ है...
मैं समझा वक्त रूठ गया था मैं ग़लत था.. वक्त कभी नहीं बदला उस ही रफ्तार से चल रहा था बदल तो मैं गया था ..... जो खुद की गलती को नज़र अंदाज़ कर खुद को ही छल रहा था..............
मां... समझा नहीं मैं तेरी मोहब्बत की छाया जब से देखा तुझे को ...खुद को तुझमें ही पाया... मैंने खुद को ढूंढा जग में ......तू जानती थी पर फिर भी .....तूने मुझको कभी नहीं जताया ये कैसी मोहब्बत है तेरी मां... मैं कभी यहां ...कभी वहां ..... पर तूने सदा मुझको अपने दिल से लगाया...
उस कमरे की खामोशी ने कह दिया कि मोहब्बत है.. उस चुनरी की सलवटें बयां करती की दिल में हलचल है... आहें कह रही हैं कि कोई मन्नत है... बिन पिए शर्बत ये कैसी ठंडक है... अजीब सी छटपटाहट थी फिर होंठ रही थी वो सी.. लगा कि लब्ज़ कुछ कहेंगे वो कुछ और पल साथ रहेंगे.... पर चले गए.. एक कोरा काग़ज़ छोड़ कर हम ने भाग कर देखा तो वो इंतज़ार कर रहे थे मोड़ पर......
गूंज है बाली की पायल की छन छन है.. ये कैसा असर है उनका खिल गया तन मन है मिलेंगे तो खिलेंगे यकीं है मिलेंगे तो खिलेंगे यकीं है.. हां हैं...वो यहीं है.. हां वो... हर कहीं हैं... मोहब्बत तू खुद को ढूंढ के देख मैं दिख जाऊंगा मैं तुझे में ही तो हूं मिल जाऊंगा तुम्हारा इंतज़ार है तुमसे बेहद प्यार है रूह तुझमें रमने को बेकरार है आजा सनम मेरी हर धड़कन तेरी मोहब्बत की कर्जदार है
किताबों ने सिखाया रास्तों को चुनना वक्त ने सीखाया रास्तों को बुनना रास्तों को बुनना र अनुभव पड़ा भारी ...... कदमों की सुनी तो राहें खोद कर भी निकल गए रास्ते .... किताबो से चला तो ...ढूढता रहा बने बनाए रास्ते....
आंखों में उसकी उबासी थी.. जिसमे छिपाई उसने अपनी उदासी थी.. हम पड़ पा रहे थे.. पर कुछ कर नहीं पा रहे थे.. बस उसका हाथ थाम लिया उसके साथ हूं ये विश्वास बांध दीया.... सिकंदर के जीवन से मिली सीख ने एक बार फिर जीने की चाहत को जागरूक कर दिया.. कि जीतना ही है तो किसी का दिल जीत कर जाना... क्योंकि सारा संसार जीत कर भी सिकंदर खाली हाथ ही गया था... हम खुश नहीं खुशनसीब हैं क्योंकि हम तुम्हारे सिर्फ़ तुम्हारे करीब हैं वकत चाहे जो करले हम एक दूसरे का नसीब है...
नसीब से खिले थे हम .. नसीब में थे कुछ गम,.. नसीब में थे सुख नसीब में था कुछ कम.... सिर्फ़ देखने का नजरिया बदला था... हमारे कर्मों का ही सारा घपला था.... शिकायत अपनों की किससे और कैसे करू.. ये कुछ वो अपने है जो... या तो खून के रिश्तों से लिपटे है... या कुछ दिल के रिश्तों में सिमटे हैं...
आंखों में तेरी उदासी दिखी जिसे पढ़ रूह तेरी प्यासी दिखी मेरे पास आ तुझे लगालू गले मान मेरी जान ... मेरे सपने सजे... आज भी तेरी छाओं तले... नहीं तैयार कर पा पर रहे हैं खुद को तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है कैसे समझाएं तुझ को ... अच्छा सुनो तो सही.. रास्ते तुम्हारे होंगे.. मंज़िल भी तुम्हारी होगी.. एक बार- बस एक बार हमसफ़र की नज़र से देखो तो मुझे फिर तुम जहां तक देखोगी ... वहां तक हमारी नज़र में बसी हर तस्वीर तुम्हारी होगी...... बैठ गया हूं मैं उस सवाल के ताक में ज़िन्दगी क्यों उड़ रही है ज़ख्मों के भाप में ...
""जाए तू कहीं भी ये सोचना ***कोई तेरी खातिर है जी रहा""" एक इस वाक्य में इतना दम है कि इक डूबती कश्ती को किनारे लगा देता है एक टूटते इंसा को फिर सितारे दिखा देता है..
खूबसूरती नज़र में खुशी सबर में मौन खबर में और ज़िन्दगी अधर में अनुभव है सुकुं संभव है हे मनुष्य आनंद की मत कर खोज उसे मत बना बोझ वो भीतर है बैठा तेरे राधे राधे जप ज़्यादा मत सोच..