मुद्दत हुई बात करे कुछ गुज़रे
अफ़सानो की
जी रहे हैं जाने किस धुन में ज़माने की,
पियास है
पानी भी है
फिर रहते हैं पियासे,
सियासत मिल गई
ज्ञान भरा है,
फिर भी रहते जिगयासे ,
समुंदर पसंद है
उसके उफान नही,
बस बाते बड़ी है
काम नही ,
गीता - क़ुरान  सब पढ़ी
पर मन में ना उतरी उसकी एक भी कड़ी ,
मुह पर दिखावटी मुस्कुराहट लिए बैठे है
और मन में है नफ़रत भारी ,
दुनिया बेहद खूबसूरत है जानते हैं
पर जीने के सच को नही मानते हैं

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