बादलों की गड़गड़ाहट कह रही है अब वो सुकून नही

बादलों की गड़गड़ाहट कह रही है
अब वो सुकून नही
बरसा करते थे हम अपनी धुन में
अब वो जुनून नही ,
क्योंकि हमारी बूँदों की टिप टिप अब धरती वासियों जागती नही
पुकारा करती थी हमें जो आवाज़ वो अब
हम तक आती नही ,
संसारिक सुख की चाह में मनुष्य हुमको भूल गया
इसलिए सावन का झूला सूखा ही झूल गया

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