ज़िंदगी हमारी दिल से मुस्कुराइ होती ..........
काश हमने हर सुबह भीतर बैठे रावण को मार कर जगाई होती , किसी का दिल दुखाने से पहले खुद की पलक भर आई होती किसी की इज़्ज़त बेआबरू करने से पहले खुद की बेटी रुलाई होती प्रकृति को नष्ट करने से पहले साँसे मिट्टी में दबाई होती , किसी की हसी उड़ाने से पहले खुद की हसीं उड़वाई होती अन का अनादर करने से पहले उससे की जुदाई होती , मंदिरों में धूध बहाने से पहले किसी पियासे की पियास भुज़ाई होती , तो आज पल पल ना संस्कारों की जग हॅसायी होती बेटियाँ पराई नही, सिर्फ़ उनकी विदाई होती हृदय में सदभावना , लोगों के समाई होती जग कल्याण में संगत जुटाई होती संतुष्ता से ज़िंदगी बिताई होती ज़िंदगी हमारी दिल से मुस्कुराइ होती ..........