मैं भारत की सीमा चलने वाली अमर हवा हूँ कोई आती - जाती घटा नहीं हूँ .................

मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो
इंक़लाब लिख जाता हूँ
मैं पहनूं कोई भी रंग
एहसास तिरंगे का ही पाता हूँ
कदम रख खड़ा जिस मात्र भूमि पर ,
उसके खिलाफ हर षधियंत्र को तोड़ देना चाहता हूँ ,
जसबातों को मेरे- मैं हर भारत-वासी में देखना चाहता हूँ,
मर गया हूँ मैं .....तुम्हारे लिए
पर मैं मिटा नही हूँ ,
मैं भारत की सीमा चलने वाली अमर हवा हूँ
कोई आती - जाती घटा नहीं हूँ .................



वीर शहीद भगत सिंघ को समर्पित

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