जय माता की जय माँ के स्वरूप को बनाने वाले विधाता की................

माँ सदैव ही घर में विराजमान है
निरंतर प्रेम, आशीर्वाद, के साथ हमारे लिए माँ -बहन के रूप में मिली वरदान है ,
फ़र्क बस इतना है
कि हम पूजा पत्थर की मूर्ति की करना चाहते हैं
उसकी नही जो साक्षात्कार है
आस्था पत्थर में रख कर खुश हैं
उसमें नहीं जिसके लिए हम ही संसार हैं .....
प्रार्थना करते हैं मूर्ति से
कि हे माता अपना आशीर्वाद बनाए रखना

और अपनी जननी से कहते हैं
वक़्त आ गया
घर अब अलग अलग बसा लेते हैं
क्योंकि तुमने हमें कभी नही समझना

जाने हम किस माँ की पूजा करते हैं
और किस का तिरस्कार
जिस दिन समझ जाएँगे
उस ही दिन से घर बन जाएगा मंदिर
परिवार के रूप में दिखेगा संसार

जय माता की


जय माँ के स्वरूप को बनाने वाले विधाता की................

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