तू नहीं तो मैं क्यों हूँ
समुंद्र की लहरें अब उफान नहीं मारती
जिस कश्ती पर मैं बैठा हूँ वो अब किनारे पर नहीं उतारती,
कहाँ जाउँ कोई अब रास्ता दिखा दे
मेरी अधूरी ज़िंदगी को खुदा से मिल वादे,
एक जन्नत सा था जहाँ
जब तक तू था यहाँ,
तू नहीं तो मैं क्यों हूँ
खुदा की इस जयास्ती को मैं क्यों सहुं........................
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