लगा सूखे कुएँ में भी रब की मेहर छलकी ............

पहले सागर की हर बूँद में खुद को ढूंढता था
जबसे खुद पर यकीन हुआ
हर बूँद में खुद की पहचान पाता हूँ
पहले कोने कोने में खुद के अक्स को देखने को तरसता था
अब हर कोने में खुद को देख इतरता हूँ,
बस ..................ज़रा सी सोच क्या पलटी
लगा सूखे कुएँ में भी रब की मेहर छलकी ............

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