ये नज़र लगना क्या होता है ? इस शब्द को तलवार बना आदमी क्या क्या बोता है, और खुल के मुस्कुराने वाले पलों को खोता है जश्न ना मनाओ नज़र लग जाएईगी खुशी को छुपाओ दुनिया को खबर लग जाएगी कुछ मत करो बस अरमानों को पोटली में बाँध कर तालें में धरों, पर ये केसी सोच है इस मन घड़न रचना के दायरे में लोग क्यों रहते बेहोश हैं, जैसे - बेटी ने लिया जन्म चलो कोई बात नही पर ना माना जश्न आख़िर क्यों ? क्यों ना खुशियाँ मनाएँ हम खुशियों के गीत गाएँ हम, इस नज़र के भंवर में वँस कर अपने अरमानों को क्यों दफ़नाएँ हम, सब कुछ देने और लेने वाला वो परम पिता एक ही है जब उसने पृथ्वी की सुंदरता रचते हुए ना सोचा की नज़र लग जाएगी तो हम क्यों खुशियाँ बाँटते हुए सोचे की दुनिया को खबर लग जाएगी हमारी खुशियों को नज़र लग जाएगी , ये सब बेकार की वो बातें हैं जिनको दूसरों पर थोप कर हम केवल उनके दिलों को दुखाते हैं