वक़्त ने एक बार फिर
वक़्त ने एक बार फिर
तुम्हें मेरी मंज़िल का किनारा बनाया है
अब तो मुझे क़ुबूल कर लेना
पहले तो तुमने मुझे ठुकराया है,
मैने शिकायत तो तभ भी ना की थी
मान लिया था
मेरी महोब्बत में कमी थी,
पर अब वफ़ा का पल्ला मेरा भारी है
अंजाम अब भी जो हो
याद रखना सनम....................
ये दीवानी हमेशा तुम्हारी थी..........तुम्हारी है........
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