बेवजह की नाराज़गियों से दिल कुछ इस कदर टूटा है

बेवजह की नाराज़गियों से दिल
कुछ इस कदर टूटा है
लगता है अब हर रिश्ता जूठा है,
वो सब जो प्रेम ने बोया था
जाने किस आग में झोंका है
फिरसे हाथ बढ़ाने का इस बार
मन नही होता है,
पर कैसे जिएंगे
ये सोच - सोच कर
वही मन रोता है
आज लगता है
आदमी एहम के आगे वाकई छोटा है,
मन का समुंदर  क्यों फूट फूट कर रोता है
उँची छलाँग मार
 मेरे अतीत को भिगोता है,
हरा हुआ दिल फिर कहता है
छोड़ माना ले
तेरा रिश्ता छोटा है
कदम कहते हैं
नही अब नही
ज़मीर भी कुछ होता है,
.........................
आख़िर आदमी एहम में आकर
रिश्ते क्यों खोता है.................

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