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Showing posts from February, 2019

तुम किसी को चाहो कोई बड़ी बात नही... कोई तुम्हे चाहे ये बड़ी बात है.......

हमने बहुतों को अपने दिल मे अपना बना बिठाया बहुत खुशी भी मिली पर जब किसी और ने हमे अपने दिल में बिठाया सच कहूँ तो.. ज़िंदगी हमारी तभ खिली.......... सच कहा है किसी ने तुम किसी को चाहो कोई बड़ी बात नही... कोई तुम्हे चाहे ये बड़ी बात है.......

मैं कभी मिटूँगा नही मैं कभी घटूँगा नही, सीमा की रक्षा से हटूँगा नही अमर भी हो गया तो रहूँगा वही फ़र्क इतना है बस दिखूंगा नही....... सैनिक जय हिंद

मैं कभी मिटूँगा नही मैं कभी घटूँगा नही, सीमा की रक्षा से हटूँगा नही अमर भी हो गया तो रहूँगा वही फ़र्क इतना है बस दिखूंगा नही....... सैनिक जय हिंद

गुज़र रहे थे जब हम अंजान गलियों से हर जगह मेहकमा अपना ही नज़र आया ...... समझ ना पाए हम इस रहस्य को दो पल फिर गौर फरमाया तो जाना सबका दिल किसी अपने ने था ठुकराया

गुज़र रहे थे जब हम अंजान गलियों से हर जगह मेहकमा अपना ही नज़र आया ...... समझ ना पाए हम इस रहस्य को दो पल फिर गौर फरमाया तो जाना सबका दिल किसी अपने ने था ठुकराया

वो नारी ही क्या जिसे आवाज़ उठानी पड़े, नारी तो वो है जो जब ठान ले तभी आगे बढ़े.......

वो नारी ही क्या जिसे आवाज़ उठानी पड़े, नारी तो वो है जो जब ठान ले तभी आगे बढ़े.......

सुख की कामना सब करे तपस्या ना करे कोई, दान भी करें दिखावे को तो सुख का बीज कहाँ बॉई , सूर्य निकले हर सुबह हम पूजे पत्थर सुबह होई चंद्रमा दे जब शीतलता तब जग सारा सोई....... हे मनुष्य फिर तू क्यों रोई

सुख की कामना सब करे तपस्या ना करे कोई, दान भी करें दिखावे को तो सुख का बीज कहाँ बॉई , सूर्य निकले हर सुबह हम पूजे पत्थर सुबह होई चंद्रमा दे जब शीतलता तब जग सारा सोई....... हे मनुष्य फिर तू क्यों रोई

माँ का आँचल खून से भरा है पिता अधमरा खड़ा है शरीर के अंग भी पुत्र के जोड़ नही पाया जिसने तिरंगे के सम्मान से स्वॅम को अमर करवाया, शोक में डूबा है सारा देश जायज़ है...... पर अब और बर्दाश्त करना बिल्कुल नाजायज़ ........... जय हिंद जय जवान

माँ का आँचल खून से भरा है पिता अधमरा खड़ा है शरीर के अंग भी पुत्र के जोड़ नही पाया जिसने तिरंगे के सम्मान से स्वॅम को अमर करवाया, शोक में डूबा है सारा देश जायज़ है...... पर अब और बर्दाश्त करना बिल्कुल नाजायज़ ........... जय हिंद जय जवान

नसीब से मिले महोब्बत से भरे वो हमे अपने दिल में बसा कर बैठे हैं अब समझे हम इतने खुश कैसे रहते हैं एक खुदा दुआ करता तुझसे ये दोस्तों का दीवाना कि मकबरा हो या आशियाना मैं रहूं वहीं जहाँ मेरे दोस्तों का ठिकाना

नसीब से मिले महोब्बत से भरे वो हमे अपने दिल में बसा कर बैठे हैं अब समझे हम इतने खुश कैसे रहते हैं  एक खुदा  दुआ करता तुझसे ये दोस्तों का दीवाना  कि मकबरा हो या आशियाना मैं रहूं वहीं जहाँ मेरे दोस्तों का ठिकाना 

कहता है फकीर हे राह राहगीर तू कहता है जिसे अपनी जागीर वो है तेरी तक़दीर इसलिए शुक्र मना हर पल मैं भी शुक्र ही मनाता हूँ, तू तो बंगले गाड़ी में रहता है मैं तो सड़क पर बैठा भी उसकी मस्ती में इतरता हूँ.......

कहता है फकीर हे राह राहगीर तू कहता है जिसे अपनी जागीर वो है तेरी तक़दीर इसलिए शुक्र मना हर पल मैं भी शुक्र ही मनाता हूँ, तू तो बंगले गाड़ी में रहता है मैं तो सड़क पर बैठा भी उसकी मस्ती में इतरता हूँ.......

ये वो दर्द है जिसकी कोई दवा नही............. ये वो क़र्ज़ है जिसकी हमें हवा नही.................. ये वो आवाज़ है जो उठी पर कोई सुनता नही ये वो दुनिया है जिसकी कुद्रट भी अब गवाह नही............ sonalinirmit

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मन की सुन गाता रहा अपनी धुन, ज़माने के लिए बुरा पर मैं था मगन, वक़्त से यही सीखा मैने अब क्या ज़रूरी था दूसरों को खुश करना अब ना मंज़ूरी था..........

मन की सुन गाता रहा अपनी धुन, ज़माने के लिए बुरा पर मैं था मगन, वक़्त से यही सीखा मैने अब क्या ज़रूरी था दूसरों को खुश करना अब ना मंज़ूरी था..........

कदम कभी भी मजधार में नही फँसते फँसते हैं हमारे विचार......... इसलिए विजय विचारो पर पाओ निश्चय को साधो... कदम करलेंगे हर भंवर को पार........

कदम कभी भी मजधार में नही फँसते फँसते हैं हमारे विचार......... इसलिए विजय विचारो पर पाओ निश्चय को साधो... कदम करलेंगे हर भंवर को पार........

जल भी रहे है जला भी रहे हैं रो भी रहे हैं रुला भी रहें हैं, जीना है पर जीने नही देना है मरना चाहते नही.......... पर ज़िंदगी को मार देना है....

जल भी रहे है जला भी रहे हैं रो भी रहे हैं रुला भी रहें हैं, जीना है पर जीने नही देना है मरना चाहते नही.......... पर ज़िंदगी को मार देना है....

तुम्हें कहती हो...कोई हक़ नही है मैं फिर भी माँग लेता हूँ कोई अपनापन है जो मैं ठुकराए जाने पर भी तुम्हें थाम लेता हूँ,

तुम्हें कहती हो...कोई हक़ नही है मैं फिर भी माँग लेता हूँ कोई अपनापन है जो मैं ठुकराए जाने पर भी तुम्हें थाम लेता हूँ, रोज़ रात भीगी पॅल्को के तुम्हीं आँसू पोंछती हो कैसे यकीं दिलवाओं अंधकार में खो जाने से तुम्हीं रोकती हो, रूह एक हो चुकी है हमारी तुम फिर भी महोब्बत को नफ़रत की आग में जलाती हो जिस झूटे ज़माने की तुम्हे परवाह है तुम उसके डर से सच्ची महोब्बत को स्वीकारने से घबराती हो..... पर तुम भी याद रखना जिस रूह के हम साथी हैं उसमे तुम्हारा अक्स खुद समाएगा तुम्हे अपना बनाए बिना ये आशिक कहीं नही जाएगा.............

हम देख रहे हैं कि हम खुद को मिटा रहे हैं फिर भी हम सत्य से नज़रे चुरा रहे हैं ....

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