ग़लती कर बैठे हम अपनो को आज़माने की , चाह छूट गई अब किसी और को अपना बनाने की, अब हम एकेले हैं ज़िंदगी की भीड़ में और एकेले में तन्हाइयों की भीड़ है .......
ग़लती कर बैठे हम
अपनो को आज़माने की ,
चाह छूट गई अब किसी और
को अपना बनाने की,
अब हम एकेले हैं
ज़िंदगी की भीड़ में
और एकेले में तन्हाइयों की भीड़ है .......
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