कही अनकही बातों के भँवर् में मैं खुद ही उलझा रहता हूँ मैं खुद की बनाई हुई कब्र में खुद ही ज़िंदा रहता हूँ नीला है आसमाँ फिर भी उसके नीले पन पर मैं सवाल उठता हूँ खुदा की रहमत हूँ फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ......
कही अनकही
बातों के भँवर् में
मैं खुद ही उलझा रहता हूँ
मैं खुद की बनाई हुई कब्र में
खुद ही ज़िंदा रहता हूँ
नीला है आसमाँ
फिर भी उसके नीले पन पर
मैं सवाल उठता हूँ
खुदा की रहमत हूँ
फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ......
बातों के भँवर् में
मैं खुद ही उलझा रहता हूँ
मैं खुद की बनाई हुई कब्र में
खुद ही ज़िंदा रहता हूँ
नीला है आसमाँ
फिर भी उसके नीले पन पर
मैं सवाल उठता हूँ
खुदा की रहमत हूँ
फिर भी रहमतो को देख नही पता हूँ......
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