वो सिर्फ़ दोस्त ही थे जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए ....

ज़िंदगी के काफिले युहीन गुज़रते चले गए
हम कभी धागो में पिरते तो कभी बिखरते चले गए ,
वो आते थे कभी कभी मिलने हमसे
जो मन को भाते चले गए ,
वो सिर्फ़ दोस्त ही थे
जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए ....
उन्हे आँसू भी नही दिखे हमारे
जिनके लिए हम बहाते चले गए,
ख़ुदगर्रज़ी की बू आती थी
हम तभ भी महोब्बत में उनकी बस्ते चले गए......
गिरते उठते चलते ज़िंदगी के सफ़र में 
वो सिर्फ़ दोस्त ही निकले
जो बेवजह रिश्ते निभाते चले गए .........

Comments

Popular posts from this blog

ग़लत फैमिय|

THINK POSITIVE