हर मज़ार पर घर तेरा ही है हर दुआ में ज़िक्र तेरा ही है , तू है इसलिए उमीद है फिर भी सांसो को इंतेज़ार तेरा ही है, तू उस सत्य में है जिसकी कोई परिभाषा नही तू उस होनी में है जिसकी किसी को आशा नही, तू ईमानदारी की उस रोटी में है जिस पर हमारी नज़र नही, तू वक़्त के उस सबर मे है जिसकी किसी को खबर नही, तू निरंतर चलने वाले मुसाफिर के होसलें में है हम पूजते उन पत्थरों में नही, तू मासूम की मासूमियत में है तू आसू के खारे पन में है तू पशु-पक्षी की ईमानदारी में है पूजा करने वाले पूजरी में नही...... तेरा अस्क कण-कण में है हम जिसमे ढूंड ते हैं बस उस ही में मिलता नही.......