मंज़िल भले ही नज़र ना आए तू हिम्मत कम ना करना, भले मजधार में फँस जाएँ कदम तू स्वॅम से जंग ना करना , यदि एश्वर भी परीक्षा लेने आए तू विश्वास को अपने भंग ना करना बस अटल अडिग चलते चले जाना मुसाफिर मंज़िल पर पहुँच कर ही नया जन्म है लेना ..........

मंज़िल भले ही नज़र ना आए
तू हिम्मत कम ना करना,
भले मजधार में फँस जाएँ कदम
तू स्वॅम से जंग ना करना ,
यदि एश्वर भी परीक्षा लेने आए
तू विश्वास को अपने भंग ना करना
बस अटल अडिग चलते चले जाना मुसाफिर
मंज़िल पर पहुँच कर ही नया जन्म है लेना ..........

Comments

Popular posts from this blog

अब समझ आया जंग और लड़ाई में फ़र्क क्या होता है जंग खुद से होती है और लड़ाई अपनो से...... शायद इसलिए मैं जंग तो जीत आया पर लड़ाई में हार गया ..............