ता उम्र यूँ ही एकतरफ़ा महोब्बत में गुज़ार देंगे

ख़याल है तुम्हारा हमारे हर अफ़साने में
फिर क्यों आते हैं तुम्हें मज़े हमे सताने में,
रूबरू हो जातें है गर
तो मस्त दिखाते हो खुदको महफ़िल जमाने में
जाने क्या मज़ा आता है तुम्हें हमे सतातने में,
एक बार आँखों में आँखें  डाल कह दो
महोब्बत नही है तुम्हें इस दीवाने से
यकीं दिलाते है
निकल जाएँगे वहाँ से किसी भी बहाने से.......
ता उम्र यूँ ही एकतरफ़ा महोब्बत में  गुज़ार देंगे
इतना नूर बसा कर रखा है तुम्हारा अपने दिल में
सारी ज़िंदगी उस प्यार पर वार देंगे...................

Comments

Popular posts from this blog

ग़लत फैमिय|

THINK POSITIVE