सिंदूर का सवाल आज वो मुझसे कह रही थी उसकी आवाज़ में पीड़ा बहुत गहरी थी , उसने मुझसे किया एक सवाल माँग में जो मेरे सिंदूर है उसका रंग क्यों है लाल , किस बात का ये प्रतीक है जब की रिश्ते कहीं गुम है केवल तनहाईयाँ ही नज़दीक है , आख़िर किसके साथ हुआ था मेरा ब्याह सिंदूर में मिले लाल रंग के साथ या फिर मंडप में खाई गई , उन कसमों के पीछे छिपे भ्रम के साथ , कि मैं भी किसी की धुलन बन इतराउंगी अपने पति प्रेम संग जीवन बिताउंगी , कुछ ही पल लगा सब समझ आ गया , किस्मत का खेल सारे रंग दिखला गया , क्योंकि जिन्होने मुझे जन्म दिया उन्होने मुझे दान दे दिया , जिन्होने मुझे दान में लिया उन्होने मेरा मान ना किया , वे कहते रहे परवरिश में मेरी कमी है माँ बाबा कहते थे उनके हिसाब से चलो अब ज़िंदगी तुम्हारी वहीं थमीं है , उसका फिर सवाल कि अगर मुझे इस तरह करवट बदलनी ही थी ? तो मुझे बचपन में ही , ससुराल विदा कर देना था , मुझे पालने का फ़र्ज़ उन ही को दे देना था , शायद इस तरह मेरी ज़िंदगी कुछ आसां हो जाती दो परि