सिंदूर का सवाल

सिंदूर का सवाल

आज वो मुझसे कह रही थी
उसकी आवाज़ में पीड़ा बहुत गहरी थी,
                       
उसने मुझसे किया एक सवाल
माँग में जो मेरे सिंदूर है
उसका रंग क्यों है लाल,

किस बात का ये प्रतीक है
जब की रिश्ते कहीं गुम है
केवल तनहाईयाँ ही नज़दीक है,

आख़िर किसके साथ हुआ था मेरा ब्याह
सिंदूर में मिले लाल रंग के साथ
या फिर मंडप में खाई गई , उन कसमों के पीछे छिपे भ्रम के साथ,
कि मैं भी किसी की धुलन बन इतराउंगी
अपने पति प्रेम संग जीवन बिताउंगी,

कुछ ही पल लगा
सब समझ आ गया,
किस्मत का खेल
सारे रंग दिखला गया,
क्योंकि

जिन्होने मुझे जन्म दिया
उन्होने मुझे दान दे दिया,
जिन्होने मुझे दान में लिया
उन्होने मेरा मान ना किया,

वे कहते रहे
परवरिश में मेरी कमी है
माँ बाबा कहते थे
उनके हिसाब से चलो
अब ज़िंदगी तुम्हारी वहीं थमीं है,
उसका फिर सवाल
कि अगर मुझे इस तरह करवट बदलनी ही थी?
तो मुझे बचपन में ही , ससुराल विदा कर देना था,
मुझे पालने का फ़र्ज़ उन ही को दे देना था,
शायद इस तरह मेरी ज़िंदगी कुछ आसां हो जाती
दो परिवरो के बजाए मैं ज़िंदगी भर , भार एक का ही उठाती
माँ बाबा ने अपनी खुशी के लिए मुझे पाला
फिर ज़माने की रीत को अदा करने के लिए मुझे घर से निकाला,
मेरा अपना तो कोई घर ही नही
ना ही कोई वजूद
बस ये बतलाना भूल  गए
जिसके साथ मेरे सपने , उस पालकी में झूल गए,

मैं ज़िंदगी को कुछ समझ ती थी वो कुछ निकली
मैं जिस गर्व से एक से दूसरे के घर चली थी
उस गर्व की नीव खोखली निकली,

थम गई थी मैं यह सब सुनकर
मेरे पास ना था कोई जवाब
और
उसके पास बहुत थे सवाल!!!!!
अपनी कलम के ज़रिए मैं आपसे पूछती हूँ
शायद आपके पास इसका कोई हल हो
ताकि हमारी बहनों का भी एक सुनेहरा कल हो|
धन्यवाद


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