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Showing posts from October, 2017

उसके एहसास में मैने खुद को पाया

उसके एहसास में मैने खुद को पाया उसकी बातों में खिलखिलता था मेरा साया , आज भी उसको पता है कि मुझे क्या पसंद है उल्टी सीधी mail भेज कर तंग करता है क्योकि मेरा पढ़ाई में हाथ तंग है , मैं ज़िद करती थी तो बच्पन में मेरे खिलोने तोड़ जाता आज बिन कहे मेरी पसंद की चीज़ मेरे लए छोड़ जाता , बच्पन मैं कितना झघड़ ता फिर बात भी नही करता था आज रोज़ बहाने से बात करलेता है ना मिलूं तो video call कर मुझे देख लेता है , घूर कर आँखों से पूछता है अगर मेरा चेहरा उदास होता है बच्पन की तरह आज भी वो मेरे साथ होता आयी , वो सचता है कि शायद मैं उसके प्यार करने के अंदाज़ को समझती नही उसे क्या पता उसके सिवा कोई और मुझे इतना समझता ही नही , इशारा नही एक दुरे को दिल से याद करने की देरी है भरी महफ़िल में वो कहता है वो पगली से बहन मेरी है , भाई बहन के इस रिश्ते को कभी किसी की ना लगे नज़र ........ यूँ ही बीती यादों संग नया बनता जाए सफ़र .................

ताक़त को मेरी तुम क्यों

ताक़त को मेरी तुम क्यों आज़माना चाहते हो, कह तो रहा हूँ मैं कमज़ोर नही बस तू मेरी कमज़ोरी हो...........

आँखें हर पल भीगी थी

आँखें हर पल भीगी थी कैसी वक़्त की उलझन है लाल रंग से बनी दुल्हन है , ठिकाना मिल रहा है पर जीने का बहाना नही , शहनाईयाँ बज रहीं है पर होंठों पर तराना नही, वो सोचती है खिलोने ही तो माँगे थे चौके पर बिठा दिया गुड्डा माँगा था दूल्हा दिखा दिया ............... पियासी ही तड़पती रही की कहीं पानी माँगा तो......समुंदर ना दिखा दें इस छोटी सी उम्र में ..........अब मुझे माँ ना बनवा दें , ये सब अब और क्या समझ पाती मैं तो अभी तक ठीक से चलना भी नही सीखी थी रोते रहने का अर्थ भी नही समझ पाई क्योंकि आँखें ही मेरी हर पल भीगी थी ...... आँसू थे जिनके करंण वो मेरे सगे थे जिन्होने पौंछ ने थे वो अब तक नही जगे थे , मुझे ज़िंदगी को जागीर समझ पहुँचा दिया गया था वहाँ जहाँ मेरी मर्ज़ी बिना बसाया गया मेरा डेरा था उस चुनरी को ऑड कर जिसके भीतर सिर्फ़ और सिर्फ़ अंधेरा था ..................

कविताओं के रास्ते हमने जीवन खिलाया है

कविताओं के रास्ते हमने जीवन खिलाया है जो कह नही पाते थे वो लिख कर बताया है ,   इशारा था जिनकी ओर उन्होने पढ़ कर भी नज़र अंदाज़ सा ताल्लुफ जताया है और जो दिल से हमें चाहते थे अपना मानते थे   उन्होने और भी गहरा होने का एहसास जगाया है .....

मैं बन कबीरा

मैं बन कबीरा उठना चाहता हूँ जग क बीड़ा कहाँ से शुरू करूँ कोई बतलादे बन गुरु , मैं साथ समुंदर के रहूं सराहना चाहता हूँ हर खुश्बू वक़्त को सलाम करता फिर कदम रखूं दिल में अनगिनत आरज़ू लिए संग सबके चलूं , चाहता हूँ कुछ ऐसा बनाना ये जहाँ की मुस्काराकर मेरा खुदा कहे तू मुझमें नही मैं तुझमें बासू.................

दीपावली की बधाई हो

 दीपावली की बधाई हो प्रेम संग दिलों की सगाई हो दुवेश भावना की घर से विदाई हो अपने घर के साथ साथ रोशनी किसी ज़रूरत मंद के घर लगाई हो .......................... दीपावली की रौनक इस तरह छाई हो हर्ष उल्लास के साथ हर चेहरे पर मुस्कुराहट छाई हो........... दीपावली की बधाई हो सोनाली निर्मित सिंघल

दीप दीपावली के हम जलाएँ

दीप दीपावली के हम जलाएँ वहाँ सरहदों पर जवान वतन पर कुर्बान हो जाएँ यहाँ आँखों मे हम त्योहार की रौनक सजाएँ वहाँ वीरों के परिवार वालों की आँखें भर आएँ , यहाँ भाईयों की मनपसंद , हम मिठाइयाँ बनवाएँ वहाँ वीरों की बहने उन मिठाइयों को देख देख रोती जाएँ , कैसा अजब सा नज़ारा है ना...... देश में देशवासी त्योहार मनाएँ हमारी खुशाली के लिए वीर अमर हो जाएँ , क्या हमारा फ़र्ज़ नही कि हम उनके लिए कुछ कर पाएँ मानते हैं कि उनका दुख तो हम कम नही कर सकते तो चलो कम से कम उनका दुख ही बाट आएँ ...

खुद को अभी इस काबिल नही समझते

खुद को अभी इस काबिल नही समझते कि किसी और की ग़लती सुधार सके बस इस काबिल समझना चाहते हैं खुद को कि कारण कोई भी हो बस   अपना समझ हमें कोई पुकार सके...........

सुहागन का सजे सुहाग

सुहागन का सजे सुहाग सिंदूर की राखे साजन लाज , माँ के आँचल तले दुनिया बेटियों की पले , पिता आनन्दित हो जब बेटी की पायल बजे बहू के प्रेम से ससुराल में फूल खिलें क्योंकि एक लड़की वो देन है जिसके हाथों में दो परिवारों की मेहन्दी सजे ..........

हम तुम्हारे बिना जी नही सकते

हम तुम्हारे बिना जी नही सकते और तुमसे ही रूठे बैठे हैं हमें नही दिखता कोई रास्ता हम ऐसे क्यों रहते हैं , तुमसे तुम्हारी ही बात कह नही पा रहे शायद इसलिए ही नज़रे चुरा रहे , लिख कर छोड़ रहे है ये सोच कर की शायद तुम्हारी नज़र इस पर पढ़ जाए क्योंकि हम तो सीधा तुम्हे ये भेज भी नही पा रहे ..........

हसीन लगती थी मैं सबको जब तक कसिन थी

हसीन लगती थी मैं सबको जब तक कसिन थी जब से नज़ाकत छोड़ी है लोगो के नज़रिए ने नज़रे मोडी हैं कुछ ना करती थी तो ठीक था अब कुछ भी करलूँ तो सबको लगता है थोड़ी है ये कैसी लोगो ने दिखावे की चादर ऑडी है बुद्यू इंसान भाता है जिसको देख कर भी नज़र नही आता है जिस दिन वो बोलने लगता है वही इंसान बिकार नज़र आता है ..............