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Showing posts from April, 2017

कहाँ चले गए वो दिन

कहाँ चले गए वो दिन जब हम जी नही पाते थे एक दूसरे के बिन संग तुम्हारे वक़्त बिताने को मैं सबसे लड़ लेती थी, काम कोई कुछ भी देदे तुझसे मिलने की तलप में सब कर लेती थी, आज मिलना क्या छूटा काम ख़त्म ही नही हो पाते मेरे जब दिन भी छोटे लगते थे और अब लगता है सूरज भी उगता है देर से सवेरे भूक भड़ गई है मेरी पियास अब बुझती नही, तुझसे मिलने के वक़्त को ही याद कर ज़िंदा हूँ वरना ज़िंदगी मुझमे अब बस्ती नही...........

खुशी ने गम से कहा तू पैदा ही क्यों होता है

खुशी ने गम से कहा तू पैदा ही क्यों होता है जबकि तेरे साथ होने से इंसान केवल रोता है, गम बोला मैं तो वास्तविकता हूँ तू भ्रम है, तेरी कद्र भी वहीं है जहाँ गम है, माना तेरे सहारे वो गुनगुनाते हैं और मुझमे डूब जाते हैं पर क्या करूँ इस ही को कर्मों का खेल बताते हैं मुझे भी कोई शौक नही आँसू बन बहने का मुझे भी होटो की लाली अच्छी लगती है पर ये तो इंसान को ही सोचना है गम या खुशी किसको चुनना है क्योंकि इन दोनो की डोर कर्मों की डाली पर ही लटकी रहती हैं............

खूबसूरत लम्हों को

खूबसूरत लम्हों को जब जब साथ ले रास्तों से गुज़रा..... पथरो से बातें करना सीख गया ठोकर ख़ाता अगर................ तो लगता एक और कर्म जीत गया ............ एक छोटे से बदलाव से ज़िंदगी पलट ती चली गई............ भूक पियास लगे ना लगे मिटे ना मिटे खुशी मिलती चली गई....................................

ज़िंदगी

ज़िंदगी खुश हूँ ज़िंदगी से कभी खफा हूँ, कभी करीब हूँ तो कभी जुदा हूँ, मैं परिस्थितियों के रहते बदलता हूँ कभी रुक जाता हूँ तो कभी चलता हूँ, तू कभी कुछ नही कहती चाहे मैं तुझसे दोस्ती रखता हूँ या तुझे छलता हूँ, मैं तेरे इस हुनर की भी तारीफ कैसे करूँ मैं तो तेरे इस अंदाज़ से भी जलता हूँ, ए ज़िंदगी मैं चाहे कुछ भी कहूँ मन से तुझे हमेशा सलाम कर चलता हूँ.................

sab khareed sakte ho tum....................

रुक जाए जो

रुक जाए जो वो सैलाब नही घर बैठे जो सपने देखें वो खुवाब नही, जो मंज़िलों को हासिल करले उसका........... जवाब नहीं गर कर्मों में दम हों तू खुदा की रहमतो का हिसाब नही, ज़िंदगी एक सच है कोई किताब नही दिल से जो इसको जी ले उसका तो कोई जवाब नही..................

आँसुओं को आज भीगने का मन है

आँसुओं को आज भीगने का मन है बारिश की बूँदों के साथ खिलने का मान है रूह कह रही है आज मुझे भी एकेला छोड़ दो समुंदर की लहरो के साथ मेरा भी अकेले बाते करने का मन है कदमों की थिरकन भड़ रही है जाना कहीं चाहती हूँ वो जा कहीं और रही हैं सब कुछ बेहद खूबसूरत सा लगता है मेरे जिस्म से जुड़ा हर कोना आज ज़िंदा सा लगता है........................
गर रूठो तो मानना भी सीखो क्योंकि रूठे को मानाने  में मज़ा तभी आता है जब वो हमारी शक्ति के भीतर मान जाता है, क्योंकि तज़ुर्बा कहता है गर रूठने वाला ...... मानाने वाला की शमता को पार कर ले तो एक खूबसूरत डाली उसके जीवन की टूट जाती है वो स्वीकार कर ले............

kis khuda ki khoj main tu dar dar bhatakta

वक़्त से नाराज़ हो चला

वक़्त से नाराज़ हो चला हवाओं से कहा तुमने मुझे छला, बहक गया था मैं खुद की लगाई हुई आग में जल रहा था मैं, उससे लड़ने बैठा था जिसकी गोद में मैं खुद रहता था, जानते हो कब समझ आया तभ............जब जिनको अपना समझा उन्होने मुझे ठुकराया और जिस वक़्त से मैं लड़ता था उस ही ने मुझे गले लगाया .............