पियासा सागर
पियासा सागर
अब पियासा है
सागर
जाने कहाँ गया वो
उजागर,
जो मन को लुभाता
था
नीले आकाश को भी
रंगो से सजाता था,
हवाओं के रुख़
पत्तों से बात कर गुज़रते थे
फूलों की खुशबू
से पक्षी चहकते थे,
हर ओर से हरियाली
रंगारंग कार्यकर्म दिखाती थी
सूरज की किरणें
पृथ्वी को चमकाती थी,
बदलते मौसम जीवन
में बदलाव लाते थे
समय के साथ बदलने
का पाठ पढ़ाते थे,
समुद्र की लहरें
मन के मैल को धो जाती थी
नई उमँगो के बीज
बो जाती थी,
आज केवल बनावटी
दुनिया का खेल तमाशा है
इसलिए सागर
पियासा है....
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