उस वक़्त को करते सलाम

उस वक़्त को करते सलाम
जिसकी नस नस में बसा था सम्मान ,
चाहे भिन थी जातियाँ
पर सबका एक ही लक्श था
दिलों में सुकून था
हर कोई प्रेम का भक़्त था,
चुलेह पर पकती थी रोटी
अमन की जलती थी ज्योति,
खुद को हम बुलाते थे
असल मज़े ज़िंदगी के
मिल बाँट उठाते थे,
आज दो कदम भी एकेले हैं

तन्हाईओं से भरे मेले हैं......

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