कुछ कहती हैं ये ओंस की बूँदें ओंस की बूँदें

कुछ  कहती हैं ये ओंस की बूँदें
ओंस की बूँदें
जब पत्तों को चूमें
कुछ कहती है
कुछ पल संग रहती है
धीमी धीमी चाल से सब को निहलाती है
दुन्ध्ला कर, सर्दी में सर्दी को बढ़ाती है
पर हम क्या जाने
इस तरह प्रेम दे वो प्रकृति को सैलाती है,
निश्चित समय पर आती
सर्दी के सँवेरे को सजाती,
जो भी मिलता, सब को छू चलती
क्योंकि मेहमान होती कुछ पल की,
शीशे पर भी छोड़ती पैगाम
बच्चे लिखते जिस पर अपना नाम,
इस तरह जब ये बूँदें सुबह-सुबह हरियाली को चूमे,
संग अपने ये सारी प्रकृति को ले घूमें,
फिर उगता सूरज सुन कर सब की पुकार,
सर्दी के मौसम की दवा बनकर अपरम्पार,
तब ओंस से ढकी ये हरियाली चमकती,
जैसे हो हीरे का बाज़ार,
फिर ओंस की ये बूँदें लुप्त कहीं हो जाती
और अगले वर्ष सर्दी में फिर से मिलने आती।

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