ज़िंदगी को जैसे देखोगे वो वैसे ही दिख जाएगी, तुम किसी को सताओगे तो क्या सोचते हो तुम्हे बक्श जाएगी , लगी आग- आज उधर तो कल इधर भी आ जाएगी, ये मौसम की तरह रुख़ बदलती है तुम किसी पर गिराओगे तुम पर भी एक दिन गिर जाएगी ज़िंदगी को जैसे देखोगे वो वैसे ही दिख जाएगी ..............
मस्त रहते है हम ये नही पता कहाँ, कभी महफ़िलों में अपनो के साथ तो कभी अकेले बसा कर खुवाबों का जहाँ, मन की गति आसमाँ पार कर जाती है जो सोच भी नही पाते वो नज़ारे देख लौट आती है, कभी हज़ारो हाथ- हाथ में होते हैं तो कभी सितारो की रोशिनी के हम साथ होते हैं वक़्त की रफ़्तार नज़र आती है ये मस्ती की चादर ओढ़ सुनेहरी नींद भी आनंद को छूँ जाती है.........
अब रास्तों पर निकल कर मैं मंज़िल की तलाश करता हूँ.... क्योंकि मंज़िलो की खबर लगते ही मैं अपनो के बिछाए जाल में चलता हूँ ...... दुख मुश्किलों का सामना करने से नही अपनो को सामने देखने से मिलता है....... इसलिए अब मैं मंज़िल पर आँख टिका घर से गुमराह बन निकलता हूँ ............
सितारों की दुनिया में उतरे हैं हम फिर भी बेजान कंकरो से करते है जंग............. हरयाली की ओड चादर गागर में है सागर......... फिर भी खुद से हम जुदा हैं जाने इससे बेहतर और जाना कहाँ है............
ना जाने क्यों संतोष नही मिल पा रहा था जबकि मैं अपने सिवा दिल सबका जीत पा रहा था........ वजह देर से सही पर अब समझ आई....... कि जिनको मैं अपने दिल में बिठा रहा था मैं खुद भी उनके दिल में बैठना चाह रहा था..................
बाज़ार सज़ा है पर एक बार दिल से सोच आख़िर किसमे रज़ा है, सुकून के पल या बनावटी छल, क्या खरीदने निकले जो पास नही जिसकी ज़रूरत है वो तो बिकता भी नही......... करले विचार हर रोज़ है त्योहार, दिल से मुस्कुराह जीले हर ज़रराह, दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ आओ प्रेम के दीप जलाएँ
आओ कुछ यादें ढूँढे पुरानी वो माँ के सुनहरे रंग की सारी वो दादी की मुस्कुराहट नूरानी, वो पापा का लाड़ वो दादाजी की किससे उन्ही की ज़ुबानी, वो थाल भर खाई मिठाई वो प्रेम से भरी दीपावली सबके साथ मनाई........ आओ फिरसे प्रेम संग से दीपावली मानते हैं थोड़ा अपनो के साथ थोड़ा अपने साथ काम करने वालों के साथ मिलकर एकता के दीप जलते हैं......... धनतेरा एवम् दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ सोनालिनिर्मित