कभी हज़ारो हाथ- हाथ में होते हैं तो कभी सितारो की रोशिनी के हम साथ होते हैं
मस्त रहते है हम
ये नही पता कहाँ,
कभी महफ़िलों में अपनो के साथ
तो कभी अकेले बसा कर खुवाबों का जहाँ,
मन की गति आसमाँ पार कर जाती है
जो सोच भी नही पाते
वो नज़ारे देख लौट आती है,
कभी हज़ारो हाथ- हाथ में होते हैं
तो कभी सितारो की रोशिनी के हम साथ होते हैं
वक़्त की रफ़्तार नज़र आती है
ये मस्ती की चादर ओढ़
सुनेहरी नींद भी आनंद को छूँ जाती है.........
ये नही पता कहाँ,
कभी महफ़िलों में अपनो के साथ
तो कभी अकेले बसा कर खुवाबों का जहाँ,
मन की गति आसमाँ पार कर जाती है
जो सोच भी नही पाते
वो नज़ारे देख लौट आती है,
कभी हज़ारो हाथ- हाथ में होते हैं
तो कभी सितारो की रोशिनी के हम साथ होते हैं
वक़्त की रफ़्तार नज़र आती है
ये मस्ती की चादर ओढ़
सुनेहरी नींद भी आनंद को छूँ जाती है.........
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