मैं मंज़िल पर आँख टिका घर से गुमराह बन निकलता हूँ ............

अब रास्तों पर निकल कर
मैं मंज़िल की तलाश करता हूँ....
क्योंकि मंज़िलो की खबर लगते ही
मैं अपनो के बिछाए जाल में चलता हूँ ......
दुख मुश्किलों का सामना करने से नही
अपनो को सामने देखने से मिलता है.......
इसलिए अब मैं मंज़िल पर आँख टिका
घर से गुमराह बन निकलता हूँ ............

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