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Showing posts from July, 2016

आवाज़ दी तो पहचाना नहीं

आवाज़ दी तो पहचाना नहीं हम चुप रहे तो इशारे करती हो फिर करीब आते तुम्हारे तो कटी कटी रहती दूर चले जाएँ तो साँसे भारती हो, इन अदाओं से मैं वाकिफ़ नहीं... पियार पहला और आख़िरी भी तुम्ही रास्ता अब तुम ही दिखा दो कैसे इस मूहोब्बत को मुकाम दें ज़रा मुझे सिखा दो

चुन दिया उन सवालों को हमने

चुन दिया उन सवालों को हमने  दीवारों में आज नही मिलते थे ढूंड ने पर भी जिनके जवाब घुल रही  थी जिसके बोझ से  एक लड़की हूँ.......कुछ पल को दूर हो गई थी इस सोच से खुद को खुद से फिर आज़ाद कर लिया ज़िंदगी के कुछ पॅलो से खुद ही हिसाब कर लिया

शब्द शब्द सुना जाए हर कोई

शब्द शब्द सुना जाए हर कोई बात की गहराई समझे ना कोई, दुखता है मन सुनने वाले का भी सुनाने वाले को बताए ये कोई.....

उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था

उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था उनकी कतराती हसीं के पीछे..... छिपी कहानी को गढ़ रहा था, उनके काजल का रंग भी आज रंग फीका था जिसे देख मैं जीता था, गालो पर थी थोड़ी लाली पर कानो में नही थी वो बाली, जिसे ज़ुल्फोन में घुमा मैं छेड़ता था........ वो महफ़िल में नज़रें चुरा रही थी आज हमसे जाने जूझ रही थी किस गम से, अपने कंगनो से ही बात कर रही थी धीरे धीरे सांसो को भर रही थी, हिम्मत बाँध फिर...हमने भी कहा आओ कुछ खाएँ शुक्र है बोलीं मुझे ले चलो वहाँ जहाँ कुछ पल हम साथ बिताएँ......

परवाह करके बेपरवाह क्यूँ छोड़ जाते हो

परवाह करके बेपरवाह क्यूँ छोड़ जाते हो समुंदर के किनारे बिठा कर पानी का रुख़ क्यूँ मोड़ जाते हो, तुम्हारा साथ ........ ही हमारी असली दावा है बिन तुम्हारे मंज़िल को ताकना भी एक सज़ा है, सब्र को तो हम फिर बाँध लेंगे तुम पियार से पुकार कर देखो कदमों को वहीं थाम लेंगें ..........

अजीब सी है उलझन

अजीब सी है उलझन धुंधला सा दिखता.... आज दर्पण, सवाल हैं जवाब नहीं, मन की पीड़ा का आज कोई हिसाब नहीं समझ नही पाती ..... की आख़िर तकलीफ़ किससे है? बीमारी से? आने वाले कल से? हर हाल में हमें जो चलने की प्रेरणा देता है उस होसले से? अचानक लग जाने वाली खरोंच से? या लोगो की हम पर थोपी गई बेबुनियादी सोच से??? क्या देगा इसका जवाब ये ज़माना जिन्हे आता है केवल बातें बनाना .. सही वक़्त का इंतेज़ार केरूँगी क्युकि मैने सीख लिया है हर हाल में खुश रह कर दिखना.....

बात सिर्फ़ समझने की है

बात सिर्फ़ समझने की है चाहे प्रकृति से या खिलोने से बिना ठोकर खाए समझ आए, तो समझो बहुत सस्ती पड़ी क्युकि एक तरफ आसमाँ मौसम के ज़रिए करता है इशारा और दूसरी तरफ इंसान के हाथो बनाई गई घड़ी कि दोनो ही वापस घूमकर आतें हैं बस वो वक़्त साथ नही लातें हैं

इजाज़त नही दूँगी तुम्हें

इजाज़त नही दूँगी तुम्हें अब दिन में मिलने आने की सपनों ......... मुझसे मिलने सिर्फ़ नींद में आया करो मैने खुद से लड़ना सीख लिया है मैं कमज़ोर नही हूँ सिर्फ़ मजबूर हूँ शायद इसमें ही कोई भलाई छुपी हो जो मुझे अब तक ना दिखी हो.....