उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था
उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहा था
उनकी कतराती हसीं के पीछे..... छिपी कहानी को गढ़ रहा था,
उनके काजल का रंग भी आज रंग फीका था
जिसे देख मैं जीता था,
गालो पर थी थोड़ी लाली
पर कानो में नही थी वो बाली,
जिसे ज़ुल्फोन में घुमा मैं छेड़ता था........
वो महफ़िल में नज़रें चुरा रही थी आज हमसे
जाने जूझ रही थी किस गम से,
अपने कंगनो से ही बात कर रही थी
धीरे धीरे सांसो को भर रही थी,
हिम्मत बाँध फिर...हमने भी कहा
आओ कुछ खाएँ
शुक्र है बोलीं
मुझे ले चलो वहाँ
जहाँ कुछ पल हम साथ बिताएँ......
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