परवाह करके बेपरवाह क्यूँ छोड़ जाते हो
परवाह करके बेपरवाह क्यूँ छोड़ जाते हो
समुंदर के किनारे बिठा कर
पानी का रुख़ क्यूँ मोड़ जाते हो,
तुम्हारा साथ ........ ही हमारी असली दावा है
बिन तुम्हारे मंज़िल को ताकना भी एक सज़ा है,
सब्र को तो हम फिर बाँध लेंगे
तुम पियार से पुकार कर देखो
कदमों को वहीं थाम लेंगें ..........
समुंदर के किनारे बिठा कर
पानी का रुख़ क्यूँ मोड़ जाते हो,
तुम्हारा साथ ........ ही हमारी असली दावा है
बिन तुम्हारे मंज़िल को ताकना भी एक सज़ा है,
सब्र को तो हम फिर बाँध लेंगे
तुम पियार से पुकार कर देखो
कदमों को वहीं थाम लेंगें ..........
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