बात सिर्फ़ समझने की है

बात सिर्फ़ समझने की है
चाहे प्रकृति से या खिलोने से
बिना ठोकर खाए
समझ आए,
तो समझो बहुत सस्ती पड़ी
क्युकि
एक तरफ आसमाँ मौसम के ज़रिए करता है इशारा
और दूसरी तरफ इंसान के हाथो बनाई गई घड़ी
कि दोनो ही वापस घूमकर आतें हैं
बस वो वक़्त साथ नही लातें हैं

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